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जयगढ़ फोर्ट खजाना लूट की कहानी हो गई हजम, किसी ने नहीं जताई फ़िल्म ‘बादशाहो’ पर आपत्ति

जयपुर। पद्मावती विवाद सुलगा हुआ है। बॉलीवुड में राजस्थान के राजघरानों पर फिल्म बनना नई बात नहीं है। पिछले साल फिल्म बादशाहों आई और बिना विवाद की चपेट में आए कमाई कर उतर गई।

राजस्थान में यह किंवदंती आम है कि इमरजेंसी में इंदिरा गांधी व उनके बेटे संजय गांधी ने जयपुर में सेना भेजकर राजपरिवार के सभी परिसरों पर छापे की कार्यवाही करवाई, जिनमें जयगढ़ का किला प्रमुख था। उन्होंने अपनी आलोचक महारानी गायत्री देवी को अरेस्ट कर जेल में डाल दिया और जयगढ़ किले में खजाने के लिए खुदाई की। यह खजाना ट्रकों में भरकर दिल्ली ले जाया गया लेकिन सरकारी खजाने में जमा नहीं कराकर स्विस बैंक भेज दिया गया।

आपने फ़िल्म बादशाहो देखी होगी। फ़िल्म की कहानी भी जयगढ़ किले से खजाना लूटने की किंवदंती से प्रेरित है। ताज्जुब यह है कि फ़िल्म बेरोकटोक चली और अच्छी कमाई भी की, मगर कांग्रेस और राज परिवार, दोनों को ही फ़िल्म की कहानी से कोई आपत्ति नहीं है। फ़िल्म की कहानी को भले ही काल्पनिक करार दिया गया है लेकिन इसके किरदार कहीं न कहीं जयगढ़ खजाने की लूट से जुड़े किरदारों से मिलते-जुलते हैं। आपत्तिजनक बात यह हो सकती है कि फ़िल्म में महारानी गीतांजलि को जालिम दिखाया गया है।

यह पूरी मिस्ट्री जानने के लिए तत्कालीन चर्चाएं, किस्से और फ़िल्म बादशाहों की कहानी की तुलना करनी होगी।

कहते कि जयपुर के राजा मानसिंह की अकबर के साथ संधि थी कि राजा मानसिंह अकबर के सेनापति के रूप में जहाँ कहीं आक्रमण कर जीत हासिल करेंगे उस राज्य पर राज अकबर होगा और उस राज्य के खजाने में मिला धन राजा मानसिंह का होगा। इसी कहानी के अनुसार राजा मानसिंह ने अफगानिस्तान सहित कई राज्यों पर जीत हासिल कर वहां से ढेर सारा धन प्राप्त किया और उसे लाकर जयगढ़ के किले में रखा। कालांतर में इस अकूत खजाने को किले में गाड़ दिया गया ताकि वक्त जरूरत पर राज्य की जनता के काम आ सके। बाद में इंदिरा गाँधी ने आपातकाल में सेना की मदद लेकर खुदाई कर गड़ा खजाना निकलवा लिया।


कुछ वर्ष पहले डिस्कवरी चैनल पर जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी पर एक टेलीफिल्म दिखाई गई थी। उसमें गायत्री देवी ने खुद इस सरकारी छापेमारी का जिक्र किया था। साथ ही फिल्म में तत्कालीन जयगढ़ किले के किलेदार को भी उस छापेमारी की चर्चा करते हुए दिखाया गया।

जनश्रुतियों के अनुसार उस वक्त जयपुर दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग सील कर सेना के ट्रकों में भरकर खजाना दिल्ली ले जाया गया, लेकिन अधिकारिक तौर पर किसी को नहीं पता कि इस कार्यवाही में सरकार के कौन कौन से विभाग शामिल थे और किले से खुदाई कर जब्त किया गया धन कहां ले जाया गया। जयपुर के कुछ गाइड सैलानियों को ये कथा सुनाते हैं कि कई ट्रक सोना मिला था।

RTI भी लग चुकी है

कुछ समय पहले जिज्ञासा दूर करने व जनहित में आम जनता को इस धन के बारे जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जयपुर के एक शख्स ने RTI का सहारा लिया। उसने गृह मंत्रालय से उपरोक्त खजाने से संबंधित निम्न सवाल पूछ सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत जवाब मांगे –

1- क्या आपातकाल के दौरान केन्द्रीय सरकार द्वारा जयपुर रियासत के किलों, महलों पर छापामार कर सेना द्वारा खुदाई कर रियासत कालीन खजाना निकाला गया था ? यही हाँ तो यह खजाना इस समय कहाँ पर रखा गया है ?
2- क्या उपरोक्त जब्त किये गए खजाने का कोई हिसाब भी रखा गया है ? और क्या इसका मूल्यांकन किया गया था ? यदि मूल्यांकन किया गया था तो उपरोक्त खजाने में कितना क्या क्या था और है ?
3- उपरोक्त जब्त खजाने की जब्त सम्पत्ति की यह जानकारी सरकार के किस किस विभाग को है?
4- इस समय उस खजाने से जब्त की गयी सम्पत्ति पर किस संवैधानिक संस्था का या सरकारी विभाग का अधिकार है?
5- वर्तमान में जब्त की गयी उपरोक्त संपत्ति को संभालकर रखने की जिम्मेदारी किस संवैधानिक संस्था के पास है?
6- उस संवैधानिक संस्था या विभाग का शीर्ष अधिकारी कौन है?
7- खजाने की खुदाई कर इसे इकठ्ठा करने के लिए किन किन संवैधानिक संस्थाओ को शामिल किया गया और ये सब कार्य किसके आदेश पर हुआ ?
8- इस संबंध में भारत सरकार के किन किन जिम्मेदार तत्कालीन जन सेवकों से राय ली गयी थी?

उपरोक्त प्रश्नों की RTI गृह मंत्रालय ने सूचना उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय अभिलेखागार, जन पथ, नई दिल्ली के निदेशक को भेजी। वहां से आवेदक को जवाब आया कि –आप द्वारा मांगी गयी सूचना राष्ट्रीय अभिलेखागार में उपलब्ध नहीं है। साथ इस विभाग ने कार्मिक प्रशिक्षण विभाग द्वारा दिए गये दिशा निर्देशों का हवाला देते हुए लिखा कि प्राधिकरण में उपलब्ध सामग्री ही उपलब्ध कराई जा सकती है किसी आवेदक को कोई सूचना देने के लिए अनुसंधान कार्य नहीं किया जा सकता।

जबकि आवेदक ने अपने प्रश्नों में ऐसी कोई जानकारी नहीं मांगी जिसमें किसी अनुसंधान की जरुरत हो, लेकिन जिस तरह सरकार द्वारा सूचना मुहैया कराने के मामले में हाथ खड़े किये गये है उससे यह शक गहरा गया कि उस वक्त जयपुर राजघराने से जब्त खजाना देश के खजाने में जमा ही नहीं हुआ, यदि थोड़ा बहुत भी जमा होता तो कहीं तो कोई प्रविष्ठी मिलती या इस कार्यवाही का कोई रिकॉर्ड होता। पर किसी तरह का कोई दस्तावेजी रिकॉर्ड नहीं होना दर्शाता है कि आपातकाल में उपरोक्त खजाना तत्कालीन शासकों के निजी खजानों में गया हो सकता है।

साथ ही यह प्रश्न भी समझ से परे है कि इस संबंध में क्या जानकारी सिर्फ राष्ट्रीय अभिलेखागार में ही हो सकती है ? किसी अन्य विभागों यथा आयकर आदि के पास नहीं हो सकती ? जबकि गृह मंत्रालय ने मेरी RTI का जबाब देने को सिर्फ राष्ट्रीय अभिलेखागार को ही लिखा।

आवेदक ने जयपुर की आम जनता से आग्रह भी किया कि किसी के पास इस संबंध में कोई जानकारी हो, किसी अख़बार की उस वक्त छपी न्यूज की प्रति हो तो उसे उपलब्ध कराए। साथ ही आरटीआई कार्यकर्त्ता इस संबंध में मार्गदर्शन करें कि यह जानकारी प्राप्त करने के लिए किन किन विभागों में आरटीआई लगायी जाए तथा पहले लगाई आरटीआई की अपील कैसे व कहां की जाए।

पाकिस्तान ने भी मांगा था हिस्सा

चर्चा यह है कि अगस्त, 1976 में भारत सरकार को पड़ोसी देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो का एक पत्र मिला. इसमें उन्होंने श्रीमती इंदिरा गांधी को लिखा था, ‘आपके यहां खजाने की खोज का काम आगे बढ़ रहा है और मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि आप इस दौरान मिली संपत्ति के वाजिब हिस्से पर पाकिस्तान के दावे का खयाल रखेंगी.’
भारत और पाकिस्तान के बीच संपत्तियों के बंटवारे को लेकर विवाद चलते रहे हैं।

उस वक्त विपक्षी दलों ने इंदिरा गाँधी पर आरोप लगाया था कि उन्होंने दिल्ली-जयपुर मार्ग जनता के लिए बंद कर दिया था और किले में मिले खज़ाने को सेना के ट्रकों में लादकर प्रधानमंत्री निवास ले जाया गया था.

हालाँकि अभी तक इस बारे में कोई पुष्ट जानकारी नहीं मिली है कि मानसिंह का खज़ाना था भी या नहीं, और अगर था तो यह अभी भी जयगढ़ के किले में ही छिपा है या निकाल लिया गया है?

यह है फ़िल्म की कहानी

डायरेक्टर मिलन लुथरिया ने यह फ़िल्म बनाई है। इसमें दिखाया गया है कि सरकार ने 1975 में देश में आपातकाल घोषित कर दिया है। इसी दौरान दिल्ली की एक पावरफुल नेत्री के बेटे की नीयत राजस्थान की एक रियासत की खूबसूरत महारानी पर खराब हो जाती है। महारानी उसके साथ अवैध सम्बन्ध बनाने से इनकार कर देती है तो वह इमरजेंसी की आड़ में सेना भेज देता है। अपने खास अफसर को आदेश देता है कि महल में और दूसरी रॉयल प्रॉपर्टीज़ की पड़ताल करके छुपाकर रखे गए सोने को खोजा जाए। सेना खजाना ढूंढ लेती है। फिर दिल्ली से उस नेत्री का बेटा सैन्य अफसरों को यह खजाना ट्रक में भरकर दिल्ली भेजने को कहता है। रियासत की महारानी गीतांजलि (इलियाना) अपने एक परिचित/प्रेमी भवानी (अजय देवगन) को कहती है कि सोने का ट्रक दिल्ली नहीं पहुंचना चाहिए और वो वादा करता है कि ऐसा ही होगा। वह कुछ दूसरे तिकड़मी साथी डलिया, संजना और टिकला (इमरान हाशमी, ईशा गुप्ता, संजय मिश्रा) की मदद से दिल्ली जाते ट्रक लूटने की योजना बनाता है। लेकिन इसमें उसकी रुकावट है एक आदमी सेहर (विदयुत जमवाल) जो असल में गीतांजलि का ही प्रेमी है। गीतांजलि खुद ही यह खजाना लुटवाकर सुरक्षित विदेश ले जाना चाहती है। इसके लिए वह भवानी से झूठे प्रेम का नाटक करती है।

फ़िल्म में महारानी को अजय देवगन यानी भवानी के सामने कपड़े उतारते हुए दिखाया गया है। साथ ही महारानी को बस्ती जलाने वाली जालिम भी दिखाया गया है। फिल्म में दिल्ली की शक्तिशाली नेत्री के बेटे का गेटअप संजय गांधी जैसा दिखाया गया है।

चर्चाएं ये भी

– इंदिरा गांधी के राज में जब महारानी गायत्री देवी उनकी आंख की किरकिरी बन गईं तब इंदिरा ने सेना भेजकर खुदाई करवाई। सेना अपने भारी-भरकम ट्रक और असला लेकर पहुंची थी। इतना कि तीन दिन तक जयपुर-दिल्ली हाइवे को बंद कर दिया गया। बाद में जब वो ट्रक लौटे तो किसी को नहीं पता था कि वे खाली थे या भरे हुए और आज भी राज़ कायम है।

– इंदिरा के बेटे संजय गांधी ने जयपुर के पास आमेर में सात दिन का कर्फ्यू लगा दिया था. आदेश था कि कोई भी सड़कों पर दिखा तो उसे गोली मार दी जाए. तब कोई हिंदु-मुस्लिम दंगे भी नहीं हो रहे थे लेकिन केंद्र सरकार ने पूर्वाग्रह के नाते ऐसा किया. किसी ने संजय को कहा कि आमेर में राजा मान सिंह का विशाल खजाना गड़ा है तो उसने इमरजेंसी की आड़ में सेना भेजी. खुदाई में 60 ट्रक सोना, चांदी और जवाहरात मिले. सबकी नजरों से बचाकर इसे जयपुर से दिल्ली ले जाया गया। वहां नई दिल्ली के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर इंदिरा गांधी ने दो विशाल प्लेन तैयार रखे हुए थे. वहां से संजय और इंदिरा ने उस खजाने को स्विट्जरलैंड भिजवा दिया।

– अकबर के शीर्ष सेनापतियों में एक आमेर के राजा मान सिंह एक बार बंगाल (अब बांग्लादेश) के शहर गौड़ गए. तब वहां के काली माता के प्रसिद्ध मंदिर जेसौर में दर्शन करने पहुंचे. वहां जेसौरेश्वरी काली माता की मूर्ति देखकर बहुत प्रभावित हुए और जाते हुए अपने साथ माता की मूर्ति को भी ले गए और आमेर में अपने पैलेस में मंदिर में स्थापित करवा दिया। मंदिर के पुजारी को भी वे अपने साथ ले गए जिसके पुरखे आज भी आमेर मंदिर में पूजा करते हैं। वहीं आमेर के किले के प्रांगण में, तहखाने में, जमीन में और दीवारों में बहुत विशाल मात्रा में सोना, चांदी और हीरे-जवाहरात छुपाकर रखे गए थे ताकि आपात परिस्थिति में जनता के काम आ सकें। इस खजाने को अभिशप्त किया हुआ था कि अगर किसी और कारण से इसका इस्तेमाल हुआ तो इसे रखने वाले का खानदान खत्म हो जाएगा। जब संजय गांधी ने आपातकाल के बहाने सारा खजाना ट्रकों में भरकर वहां से निकालकर अपने कब्जे में ले लिया तो उन्हें नहीं पता था कि उसमें उन्हीं काली माता के गहने भी थे। इसी के साथ गांधी परिवार की बर्बादी शुरू हो गई। पहले संजय प्लेन क्रैश में मारे गए, फिर इंदिरा गांधी की हत्या हुई और उसके बाद राजीव गांधी की।