भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन रोहिणी नक्षत्र के संयोग में श्री कृष्ण का भगवान ने अवतार लिया। सोलह कला सम्पूर्ण महान योगी श्रीकृष्ण का नामकरण व अन्नप्राशन संस्कार गर्ग ऋषि ने अपनी कुल गुरू की हैसियत सें किया।
खास बात यह रही कि कृष्ण के जीवन की कुल गुरु की ओर से की गई सभी भविष्यवाणियां अक्षरस सही रहीं, भाद्रपद मास की इस बेला पर हम गर्ग ऋषि को प्रणाम करते हैं।
भगवान श्री कृष्ण की जन्म कुंडली
अष्टमी तिथि की मध्य रात्रि में जन्मे कृष्ण का वृषभ लग्न में हुआ। चन्द्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में बैठे व गुरू, शनि, मंगल, बुध भी अपनी-अपनी उच्च राशियों में बैठे थे। सूर्य अपनी ही सिंह राशि में बैठे। योग साधना, सिद्धि एवं विद्याओं की जानकारी के लिए जन्म कालीन ग्रह ही मुख्य रूप से निर्भर करते हैं।
अनुकूल ग्रह योग के कारण ही कृष्ण योग साधना व सिद्धि में श्रेष्ठ बने। गुरू अष्टमेश बन तृतीय स्थान पर उच्च राशि में बैठ गुप्त साधनाओं से सिद्धि प्राप्त की तथा पंचमेश बुध ने पंचम स्थान पर उच्च राशि कन्या में बैठ हर तरह की कला व तकनीकी को सीखा।
चन्द्रमा ने कला में निपुणता दी। मंगल गज़ब का साहस व निर्भिकता का कारण बना। शुक्र ने वैभवशाली व प्रेमी बनवाया। शनि ने शत्रुहन्ता बनाया व सुदर्शन चक्र धारण करवाया। सूर्य ने विश्व में कृष्ण का नाम प्रसिद्ध कर दिया। जन्म कालीन ग्रह ने कृष्ण को श्रेष्ठयोगी, शासक, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, चमत्कारी, योद्धा, प्रेमी, वैभवशाली बनाया।
जन्माष्टमी का दिन, समय और मुहूर्त
इस वर्ष जन्माष्टमी 14 व 15 अगस्त 2017 को मनाई जाएगी। 14 अगस्त को 19 बजकर 45 मिनट से भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी प्रारम्भ होगी तथा 15 अगस्त को 17 बजकर 39 मिनट तक रहेगी। अपनी अपनी मान्यता के अनुसार जन्माष्टमी मनाई जाएगी।
–भंवरलाल, ज्योतिषी एवं संस्थापक जोगणिया धाम पुष्कर
यह भी पढ़ें
श्रीकृष्ण का प्रिय मोर पंख बदल सकता है आपका भाग्य, जन्माष्टमी पर इसे आजमाएं
जन्माष्टमी यानी मोह रात्रि पर करें ये उपाय, पूरी होगी आपकी हर मनोकामना