भोपाल। शुक्रवार से प्रारंभ हुआ श्राद्ध पक्ष वास्तव में पितरों को याद करके उनके प्रति श्रद्धा भाव प्रदर्शित करने और नई पीढ़ी को अपनी प्राचीन वैदिक और पौराणिक संस्कृति से अवगत करवाने का पर्व है। इस पक्ष में सुयोग्य ब्राह्मण को भोजन करने, दान-दक्षिणा आदि देने से हमारे पापों का अंत होता है, ग्रहों के दुष्प्रभाव दूर होते हैं और पितरों का आशीर्वाद एवं कृपा प्राप्त होने से समस्त सुख-सुविधाएं मिलने लगती हैं। पितरों का श्राद्ध करने से जन्म कुंडली में पितृ दोष से भी छुटकारा मिलता है। इस दौरान अपने पुरखों का तर्पण कर कौओं को भोजन कराने के विधान होते है। ऐसा नहीं करने पर पितृक रूठ जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक होता है, जब वह अपने माता-पिता की सेवा करे व उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि का पितृपक्ष में विधिवत श्राद्ध करे। प्रत्येक मानव पर जन्म से ही तीन ऋण होते हैं – देव, ऋषि व पितृ। श्राद्ध की मूल संकल्पना वैदिक दर्शन के कर्मवाद व पुनर्जन्मवाद पर आधारित है। श्राद्ध करने से कर्ता पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है तथा पितर संतुष्ट रहते हैं जिससे श्राद्धकर्ता व उसके परिवार का कल्याण होता है। जो लोग अपने पितरों का श्राद्ध श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके पितर संतुष्ट होकर उन्हें आयु, संतान, धन, स्वर्ग, राज्य मोक्ष व अन्य सौभाग्य प्रदान करते हैं।
श्राद्ध कर्म के लिए इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि श्राद्ध सदैव अपने घर पर ही किया जाये। किसी दूसरे के घर पर किया गया श्राद्ध निशिद्ध होता है। श्राद्ध करते समय किसी तरह का दिखावा नहीं करना चाहिए तथा अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार ही श्राद्ध में दान आदि करना उचित रहता है। धन के अभाव में घर में निर्मित खाद्य पदार्थ को अग्नि को समर्पित करके जल से तर्पण करते हुए गौ माता को खिला कर भी श्राद्ध कर्म पूर्ण किया जा सकता है। श्राद्ध पक्ष में किसी भी तरह के शुभ और मंगल कार्य को करना निशिद्ध माना गया है।