न्यूज नजर : 10 जनवरी 2020 पौष मास की पूर्णिमा है और पूर्णिमा के यश पर उपछायी चन्द्र ग्रहण होगा। वास्तव में यह ग्रहण की श्रेणी में नहीं माना जाता है और एक खगोलीय घटना ही मानते हैं। इसमे चन्द्रमा धुंधला सा ही दिखाई देता है। इस कारण इसकी धार्मिक या पूजा उपासना जैसी कोई मान्यता नहीं है।
दिनांक 10 जनवरी की रात 10 बजकर 38 मिनट से रात्रि 2 बजकर 42 मिनट तक चन्द्रमा , पृथ्वी की विरल में से गुजरेगा जिससे चन्द्र क्रांति थोड़ी सी मलिन या धुंधली ही दिखाई देगी। यह माद्य या परिछाया चन्द्र ग्रहण भारत सहित सम्पूर्ण एशिया यूरोप आस्ट्रेलिया अफ्रीका तथा ऊत्तरी अमेरिका के अधिकांश भाग व अटलांटिक महासागर व हिन्द महासागर में दिखाई देगा ।
धार्मिक मान्यता में चन्द्रमा की उत्पत्ति समुद्र से मानी गई है अतः यह लक्ष्मी जी का भाई है । यह पुराणों में पुरूष ग्रह मगर ज्योतिष में यह स्त्री ग्रह माना गया है । इसे काल पुरूष का मन व ह्रदय माना गया है।आकाश के सत्ताईस नक्षत्रो में चन्द्रमा भ्रमण करता हुआ पृथ्वी की परिक्रमा करता है तथा तीन नक्षत्रो का स्वामी माना जाता है । रोहिणी, हस्त व श्रवण नक्षत्र का यह स्वामी है । बारह राशि के सत्ताईस नक्षत्र पर भ्रमण कर एक चक्कर साढे उन्नतीस दिन में 29 दिन व आधा दिन में पूरा करता है।
सत्ताईस नक्षत्रो में अंत के पांच नक्षत्र घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उतरा भाद्रपद व रेवती में चन्द्रमा जब भ्रमण करता है तो यह ” पंचक ” कहलाते हैं। इन नक्षत्रो में चन्द्रमा के भ्रमण के समय ईमारती सामान खरीदना, घर की छत डलवाना, दक्षिण दिशा की यात्रा करना, चारपाई बनवाना तथा शव दाह करना वर्जित माना गया है । शव दाह रोका नहीं जाता है अतः शव दाह के साथ पंचक का टोटका किया जाता है जिसमे आटे के चार पुतले बनाकर जलाया जाता है।
कहा जाता है कि पंचक में हानि -लाभ व रोग जो भी हो वह निकट भविष्य मे पांच गुणा हो जाता है ।
जन्म के समय चन्द्रमा की मजबूत स्थिति व शनि की पैदाईश साढ़े साती का अनुकूल संयोग राजयोग व शासन योग को देती है ।चन्द्रमा गुरू ग्रह के साथ गज केशरी योग बना भी सता व शासन सुख देता है। ज्योतिष शास्त्र में चन्द्रमा को यश दिलाने वाला माना जाता है। ग्रहण चन्द्रमा के यश को कम कर देता है और उसका प्रभाव पूरी पृथ्वी पर पड़ता है।
व्यक्ति के जीवन मे सुख और आराम को निर्धारित करने मे चन्द्रमा अहम भूमिका निभाता है ।चन्द्रमा अपनी राशि कर्क मे हो या उच्च राशि वृष मे हो या फिर मंगल, गुरू, सूर्य के साथ हो तो खूब सुख आराम दिलाता है भले ही पाप ग्रह की युति व सम्बन्ध ही क्यो न हो ।
चौथे स्थान के स्वामी ग्रह सुखेश कहलाते है यह उस से भी ज्यादा सुख देता है ।मन का कारक होने के कारण यह व्यवहार पर भी नियंत्रण करता है ।
राहु व शनि से प्रभावित होने पर यह कठोर व्यवहार व मंगल, सूर्य के प्रभाव से दादा गिरी वाला प्रभाव व बुध के साथ मीठा व लालची व्यवहार, शुक्र के साथ प्रेमवत व्यवहार केतु के साथ भावुक व्यवहार व्यक्ति को प्रदान करता है ।
बच्चे के जन्म के समय यह जिज्ञासा होती है कि बच्चा किस धातु के पाये मे हुआ है जिसका जीवन भर असर रहता है ।
जन्म के समय जन्म कुंडली के पहले, छठे व ग्यारहवे घर मे हो तो वह सोने के पाये में जन्म माना जाता है। यहां चन्द्रमा बच्चे को रोग व पीडा देता है चाहे सारे सुख ही क्यो न मिल जाय ।
दूसरे, पांच व नवे घर में चांदी का पाया जो शुभ संकेत देता है ।
तीसरा तांबे का पाया तीन, सात, दसवे धर से जाना जाता है जो मध्यम सुख देता है । चौथे लोहे का पाया जब चन्द्रमा चौथे, आठवे व बारहवे घर मे बैठा हो।यह निम्न माना जाता है और बच्चे को जीवन भर कड़ी मेहनत करवाता है।
सोने के पाये में स्वर्ण तथा लोहे के पाये में लोहा दान करने की प्रथा है। यहां जन्म कुंडली में घर लग्न को पहला घर मानकर किया जाता है ।जन्म कुंडली में चन्द्रमा जिस राशि में बैठा हो वही उसकी जन्म राशि मानी जाती है तथा चन्द्रमा जिस नक्षत्र में भ्रमण जन्म के समय कर रहा हो उस नक्षत्र के स्वामी की दशा बच्चे के शुरू होती है ।
चन्द्रमा स्मरण शक्ति, कल्पना, भावना, संगीत, कला, प्रेम, मानसून, सुख, आराम व व्यवहार को कुंडली में अपनी स्थिति के अनुसार तय करता है ।
संत जन कहते हैं कि हे मानव यह सब कुछ मानव के शोध कार्यों की मान्यता है ना कि यह सब कुछ बखान आकाशीय ग्रह नक्षत्रों व पिंड करते हैं। आकाशीय ग्रह नक्षत्रों व पिंड को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कौन उनका पक्षधर हैं और कौन नही और ना ही वह आस्तिक का भला कर उन्हें भक्त बनाते हैं और ना ही नास्तिक को बुरा भला कह कर उनका अनर्थ करते हैं।
इसलिए हे मानव यह जरूरी नहीं हैं कि कोई तेरा अनुयायी है तो वह यशस्वी है और जो तेरे शत्रु का अनुयायी है बदनाम है। इसलिए तू स्वयं को ही पालनहार मत मान क्योंकि सब अपना पेट, अपने ही अनुसार भरते हैं। तेरी रहमत पर तो तेरा कुनबा ही पलता है।