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पृथ्वी और चन्द्रमा की छाया का खेल है ग्रहण, भयभीत न हों

 

न्यूज नजर : पृथ्वी और चन्द्रमा की छाया का खेल यानी सूर्य ग्रहण सुबह 8 बजे से शुरू होगा तथा 1 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगा। सूर्य ग्रहण की कुल अवधि 5 घंटे 35 मिनट रहेगी।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

कंकणाकृति सूर्य ग्रहण – आंशिक, ग्रहण शुरू सुबह 8 बजकर 11 मिनट पर,ग्रहण समाप्त – 10 बजकर 54 मिनट, आंशिक ग्रहण अवधि 2 घंटे 43 मिनट, सूतक 25 दिसम्बर की रात 8 बजे से शुरू होगा। ग्रहण समाप्ति के साथ सूतक भी समाप्त होगा। ग्रहण नक्षत्र व राशि मूल नक्षत्र व धनु राशि, दिनांक 26 दिसम्बर गुरुवार।

सदियों से आज तक ग्रहण होते चले आ रहे हैं। जब मानव को ग्रहण के बारे में ज्ञान नहीं था तो वह बेफिक्र था और जैसे जैसे ज्ञान ने अपना विस्तार किया तो व्यक्ति ने इस ग्रहण की जानकारी की तथा पाया कि सूर्य ग्रहण अमावस्या तिथि को ही होता है और चन्द्र ग्रहण पूर्णिमा को ही होता है।

इस जानकारी के साथ ही इस के विषय में सम्पूर्ण जानकारी के बाद एक वर्ग प्राकृतिक कारणों की तरफ बढ़कर वैज्ञानिक बन गया तो दूसरी सोच इसे अदृश्य शक्ति के अदृश्य देव के साथ जोड़ धर्म शास्त्र की ओर बढ गया। विज्ञान ने महज इसे खगोलीय घटना माना है और इसे पृथ्वी व चन्द्र की छाया का खेल समझने लगा। धर्म शास्त्र ने इसे पूर्ण धार्मिक मानते हुए इसे शुभ नहीं माना।

26 दिसम्बर पौष मास की अमावस्या गुरूवार के दिन सुबह 8 बजे प्रारम्भ होकर ग्रहण 1 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगा। यह सूर्य ग्रहण भारत के अतिरिक्त एशिया, आस्ट्रेलिया तथा अफ्रीका में दिखाई देगा। ग्रहण की पूर्ण अवधि 5 घंटे 36 मिनट की होगी। अलग अलग स्थानो पर ग्रहण का समय अलग अलग होगा।

सूर्य ग्रहण का प्रारम्भ व समाप्ति काल अलग अलग स्थान का होता है। आंशिक ओर कंकणाकृति सूर्य ग्रहण होने के कारण ग्रहण सुबह 8 बजकर 11 मिनट पर शुरू होगा तथा 10 बजकर 54 मिनट पर मोक्ष होगा। ग्रहण की यहां आंशिक अवधि 2 घंटे 43 मिनट की होगी।

इस ग्रहण का धार्मिक मान्यताओं में सूतक काल दिनांक 25 दिसम्बर की रात 8 बजे शुरू होगा तथा उसी के साथ मंदिरों के पट बंद हो जाएंगे और पूजा पाठ नहीं होगा। इस के साथ ही सूतक काल में बालक वृद्ध व रोगियों को छोड़कर धार्मिक जनों को भोजनदि नहीं करने के निर्देश शास्त्रों में मिलते हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह ग्रहण मूल नक्षत्र ओर धनु राशि में होने से पृथ्वी पर प्राकृतिक प्रकोप बढेगे। खगोल शास्त्र के अनुसार यह ब्रह्मांड में होने वालीं स्वाभाविक घटना है। पृथ्वी और चन्द्रमा की छाया के खेल के कारण ही ग्रहण होता है।

संतजन कहते हैं कि हे मानव, आकाश में आकाशीय तारे, ग्रह और उपग्रह की स्थिति व गति तथा उनके भ्रमण की निरंतरता के कारण ग्रहण तो होते ही रहेंगे। सदियों से आज तक यह ग्रहण होते आए हैं और होते ही रहेंगे भले ही पृथ्वी पर इसके प्रभाव पडे या नहीं पडे। खगोल विज्ञान इसे एक खगोलीय घटना मानता है जबकि धर्म शास्त्र इसे अपनी मान्यताओं के अनुसार व्यवहार करता है।

इसलिए हे मानव, तू भले ही किसी भी मान्यता में विश्वास रख फिर भी अपने आत्म बल को तथा मन को मजबूत रख तथा भावी हानि की आशंका को दिमाग में घर ना करने दे। भले ही तू इसके दुष्प्रभावों के बचने के लिए कर दान, पुण्य, जप, तप कर लेकिन डर मत। ग्रहण तो खगोलीय घटना है जो होकर रहेगी भले ही इसके प्रभाव पडे या नहीं।