सारा खेल देख कर वो दंग रह गया । सारे अस्त्र शस्त्र और शक्ति के वीर सूरमा सब शोर शराबा मचाने में ही रह गए। राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, नीतिकार, धर्मज्ञ सभी धराशायी हो गए। झूठी आन में वीर निष्ठा की आड़ में रो लिये। कोई भी ऐसा नजर नहीं आया जो अपनी आन, बान और शान के लिए लड़ा।
बालक, वृद्ध और दुर्बल मरते गये। महिलाएं जुल्मी योद्धाओं के बीच अपना सम्मान खोती रहीं एयर रही विधवाएं होती गईंं। धर्म रोता रहा। निष्ठा बेबस हो कर घुटती रही। छल कपट, झूठ फरेब का दानव आकर बढाता रहा और कर्म बदली परिभाषा देख पाप कर्म पर उतारू हो गया। वहां केवल चारों तरफ अहंकार व अंधकार ही छाया हुआ था।
अहंकार के अंधकार में वहां पर उसे कोई नजर नहीं आ रहा था। केवल एक तेज गति से काल चक्र चल रहा था ओर उसके पीछे एक मजबूत खडग लेकर एक काला साया सब को मार-काट मचा काल के गाल में डाल रहा था।
यह कहते-कहते उसकी आंख में आंसू आ गए और बोला, हे नाथ यह हमारी ही भूल थी कि हम इन्हें एक श्रेष्ठ ओर कुशल योद्धा मान बैठे। ये सब तो अमरबैल की तरह दूसरों के सहारे अपना वर्चस्व कायम करने में लगे हैं और एक दूसरे को गुनाहगार बता, छल कपट झूठ से उन्हे मरवा रहे हैं।
इस सभ्यता और संस्कृति को देख मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि एक अभिमन्यु को घेरने व मारने मे लिए सभी शक्ति के वीर सूरमा भारी वीर बन उस निहत्थे पर वार कर रहें है। हे नाथ, हम भी परमात्मा से डरते हैं जबकि ये सब सत्ता के सुख के लिए ही हर छल बल ओर शक्ति का प्रदर्शन कर रहें हैं।
हे नाथ रावण को भी बडे मर्यादा के साथ मारा गया था लेकिन आपने तो धर्म युद्ध की घोषणा की थीं लेकिन यहां तो अधर्म व छल कपट का युद्ध सत्ता के लिए हो रहा है। यह कहतें कहतें वो एक महान योद्धा बर्बरीक रो पडा जिसने इस धर्म युद्ध के लिए अपनें आप बलिदान दे दिया था।
यह सुनकर योगी राज कृष्ण ने बर्बरीक को वरदान देकर कहा! हे वीर तुम धन्य हो जो राक्षस कुल मे रह कर भी धर्म की मर्यादा रखते हो। सक्षम होकर भी राज सत्ता से दूर रहते हो। यह कह कर श्री कृष्ण चले गए।
संत जन कहते हैं कि हे मानव किसी भी नीति से भले ही तो शक्तिमान बन जाओ लेकिन मानव कल्याण के से ही तुम सूरमा कहलाओगे। इसलिए हे मानव तू भले सब कुछ हार जा फरेबी जीत सदा दुखदायी होती हैं।
-भंवरलाल,
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगनिया धाम, पुष्कर