राजा से रंक बनने की कहावत जरूर सुनी होगी, मगर एक महाराजा पर तो यह सटीक लागू भी हो गई। टिगरिया वंश के आखिरी महाराज ब्रजराज के साथ कुछ ऐसा ही बीता। उड़ीसा की आखिरी रियासत टिगरिया में जन्मे ब्रजराज ने अपने अंतिम दिनों में पेट भरने के लिए रिक्शा तक चलाया, लेकिन फिर भी उनकी अंतिम इच्छा पूरी नहीं हो सकी। टिगरिया वंश मूलत: राजस्थान का है लेकिन महाराज बृजराज के पूर्वज 12वीं शताब्दी में उड़ीसा में रहने लगे और वहां टिगरिया रियासत की नींव रखी। इस खुशहाल रियासत में करीब 80 गांव थे जो टिगरिया वंश के राजा सुदर्शन महापात्रा ने बसाए थे। 15 अक्टूबर 1921 को जन्मे ब्रजराज इस रियासत के आखिरी राजा बने।
महाराज के पास एक शाही महल के साथ-साथ, घुड़शाला और उस जमाने की 25 लग्जरी कारों का काफिला भी हुआ करता था। मोटर-कारों से अंग्रेजी हुकमरान सहित देश की बड़ी रियासतों का उनके महल में आना-जाना लगा रहता था। महल में महफिलें सजती थी और शाही कार्यक्रम भी होते थे। पढ़ाई में महाराज ब्रजराज ने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के राजकुमार कॉलेज से डिग्री भी हासिल की थी।
इस बीच ऐसा वक्त आया जब लोकतंत्र मजबूत हुआ और रियासतों का विलय होना शुरू हो गया। महाराज ब्रजराज ने उस दौर में अपने महल को 75 हजार रुपए में बेच कर एक नया रास्ता चुन लिया। राजसी ठाठ-बाट में पले महाराज ब्रजराज का यह कदम उन्हें सड़कों की खाक छानने को मजबूर कर देगा यह उन्हें उस वक्त महसूस नहीं हुआ। लोगों की नजर में अब बृजराज महाराज नहीं रहे थे। एक गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर हुए बृजराज ने अपना पेट पालने के लिए रिक्शा चलाना शुरू कर दिया और एक झोंपड़ी में रहने लगे। उम्र के 95 साल पूरा करने के बाद नवंबर 2015 को उनका देहांत हो गया। महल में जन्मे महाराज बृजराज ने झोंपड़ी में अंतिम सांस ली।
परिचितों ने बताया कि वे चाहते थे कि टिगरिया के लोग 10-10 रुपए इक_ा कर उनका अंतिम संस्कार करें, लेकिन उनकी आखिरी इच्छा भी पूरी नहीं हो पाई। ब्रजराज की शादी जयपथन की एक राजकुमारी रसमंजरी देवी से कर दी गई थी। शादी के बाद उनके तीन बेटे और दो बेटियां हुई। ब्रजराज के बड़े भाई मंडासा रियासत में बस गए थे। मंडासा से दो किलोमीटर दूर उनकी पत्नी का घर है जो टिगरिया की पूर्व विधायिका थीं, लेकिन पिछले कई दशकों से दोनों मिले नहीं।