ग्वालियर। केन्द्रीय इस्पात मंत्री नरेन्द्र तोमर को अपने संसदीय क्षेत्र ग्वालियर में ध्यान देने की जरुरत है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने दुनियाभर के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में ग्वालियर को दूसरे स्थान पर लिया है। तोमर ने इस रिपोर्ट पर ट्विट किया है-संबंधित विभागों से चर्चा कर इस दिशा में परिणाम मूलक कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। मुझे प्रसन्नता है कि ग्वालियर के नागरिक प्रदूषण के प्रति जागरूक हैं। मैं भी इसके लिए गंभीरता से कार्यरत हूं।
पिछले साल देश के गंदे शहरों पर आई सूची में भी ग्वालियर टॉप 10 में था। श्री तोमर को समझना होगा कि सिर्फ दो-तीन लाइन लिखिने से इस भयानक समस्या से नहीं निपटा जा सकता।
ग्वालियर नगर निगम ने आजादी के बाद कुछ-एक साल छोड़ दें तो ज्यादातर समय में भाजपा का महापौर ही बनता रहा है, आज भी है। इसके बावजूद इस ग्वालियर का दुर्भाग्य है कि यह कचरे वाला शहर है, सर्वाधिक प्रदूषण वाला शहर है।
वर्षों पूर्व ग्वालियर में जेसी मिल, ग्रेसिम, ग्वालियर पॉटरीज जैसे चिमनी वाले बड़े उद्योग थे उस समय ग्वालियर का पर्यावरण ठीक-ठाक था और आज जब ये उद्योग नेस्तनाबूद हो गए हैं तो ग्वालियर की आबोहवा बिगड़ रही है तो इसका सीधा सा दोष शासकीय नीतियों पर जाता है।
शहर में हर रोज जो कचरा निकलता है उसको वैज्ञानिक तरीके से नष्ट करने का नगर निगम के पास वर्षों से प्लांट नहीं है। नतीजा यही कचरा प्रदूषण फैला रहा है, गंदगी फैला रहा है। हमारे यहां विकास के नाम पर पेड़ काटे जा रहे हैं, पहाड़ों पर मकान बन रहे हैं, जबकि ग्वालियर के इन्हीं पहाड़ों पर कभी हरी-भरी झाडिय़ां हुआ करतीं थीं। पर्यावरण को बचाए रखने के प्रयास हुए ही नहीं।
यहां यह भी बता दें कि ग्वालियर महापौर विवेक शेजवलकर केन्द्रीय पर्यावरण निवारण बोर्ड के डायरेक्टर हैं। महापौर से पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने अपने ग्वालियर का पर्यावरण बचाने के लिए क्या किया?
केन्द्रीय मंत्री के रूप में श्री तोमर के पास बहुत अधिकार हैं। राज्य शासन में भी उनका बहुत दबदबा है। वह चाहे तो अपने ग्वालियर को खूबसूरत, साफ-सुथरा और हरा-भरा बनाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। बस उन्हें धरातल पर आकर कार्य करना होगा और शासकीय कार्यों की निगरानी करनी होगी।