अहमदाबाद/नई दिल्ली। गुजरात में दलितों की पिटाई के बाद वहां दलित समुदाय में भारी गुस्सा है और बुधवार को बुलाए गए गुजरात बंद के दौरान कुछ जगहों पर हिंसा की घटनाएँ हुई हैं। वहीं देश की राजधानी दिल्ली में इस पर सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने बुधवार को इस मुद्दे को लेकर राज्य सभा और लोक सभा में हंगामा किया। राज्यसभा में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के सांसदों ने इस मुद्दे पर तत्काल बहस की मांग की जिसके बाद शोरशराबे हंगामे के कारण राज्यसभा को कुछ देर के लिए स्थगित भी करना पड़ा है।
सौराष्ट्र के अमरोली, भावनगर, जूनागढ़ और राजकोट जैसे ज़िलों में बंद का ख़ासा असर नज़र आ रहा है। वहाँ बसों पर पथराव हो रहा है स्कूल कॉलेज बंद हैं। जूनागढ़ और अहमदाबाद में भी स्कूल कॉलेज बंद कराए गए हैं क्योंकि सरकारी बसों और दफ़्तरों को निशाना बनाया जा रहा है।
ग्यारह जुलाई को वेरावल ज़िले के ऊना में कथित गो रक्षकों ने जानवर की खाल उतार रहे चार दलितों की बेरहमी से पिटाई की थी। इस घटना का वीडियो वायरल हो गया था। इसके बाद भड़के प्रदर्शनों में पथराव हुए थे जिनमें एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई। विरोध प्रदर्शनों के दौरान 16 दलितों ने आत्महत्या करने की कोशिश की थी। इनमें से एक युवक की मौत हो गई है। हालांकि प्रशासन का कहना है कि मृत व्यक्ति ने व्यक्तिगत कारणों से ज़हर खाया था लेकिन दलित संगठन प्रशासन के दावों को नकार रहे हैं।
गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल इस मामले में जांच के आदेश दे चुकी हैं। वह पीटे गए दलित युवकों से मिलने ऊना पहुंच गई हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी गुरुवार को गुजरात का दौरा करने वाले हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी ऊना जाने का ऐलान किया है। इस तरह दलित समुदाय के नौजवानों के साथ हुए अत्याचार के मामले पर सूबे और दिल्ली में भी सियासत तेज हो गई है।
बसपा प्रमुख मायावती ने संसद के बाहर कहा, ”दलितों से जुड़ा कोई भी मामला जब बसपा उठाती है, तो आपस में मिले हुए कांग्रेस, भाजपा उस पर राजनीति करने लगते हैं।” कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने बुधवार को इस मुद्दे को लेकर राज्य सभा और लोक सभा में हंगामा किया।
राज्यसभा में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के सांसदों ने इस मुद्दे पर तत्काल बहस की मांग की जिसके बाद शोरशराबे हंगामे के कारण राज्यसभा को कुछ देर के लिए स्थगित भी करना पड़ा है।
गौरतलब है कि गुजरात में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अत्याचार और इंसाफ की बातों से हटकर यह मामला सियासी रुख अख्तियार कर चुका है। इसके साथ ही तमाम राजनीतिक दल हिंसा की इस घटना में अपनी रोटियां सेंकने में लग गए हैं।