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राजस्थान शिक्षा बोर्ड का बेतुका नियम ले रहा सैकड़ों बच्चों के भविष्य की बलि

सन्तोष खाचरियावास @ अजमेर

… और इस बार भी माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के एक बचकाने नियम ने प्रदेश के कई बच्चों के सपनों की बलि ले ली है। उन्हें फिर से खड़े होने के लिए सहारे का हाथ पकड़ाने की बजाय ठेंगा दिखा दिया है, यानी उन्हें फेल घोषित कर दिया गया है… उनका एक साल बर्बाद हो गया…सिर्फ और सिर्फ एक नियम की वजह से।

बोर्ड ने एक दिन पहले ही दसवीं का रिजल्ट घोषित किया है। इस बार 10 लाख 60 हजार 751 बच्चों ने परीक्षा फार्म भरे। इनमें से 10 लाख 39 हजार 895 बच्चों ने परीक्षा दी थी। इनमें से भी 44 हजार 706 बच्चे फेल हो गए।
कुल 27 हजार 797 बच्चों को सप्लीमेंट्री मिली है, यानी थोड़ी और मेहनत कर ये बच्चे पास हो सकते हैं, इन्हें फिर से खड़े होने का मौका मिला है।
अब बात करें फेल होने वाले बच्चों की तो उनमें से कई केवल दो विषयों में फेल हुए तो उन्हें सम्पूर्ण फेल घोषित कर दिया गया। जबकि कई बच्चों को दो विषयों में फेल होने पर सप्लीमेंट्री दे दी गई। यह विरोधाभास क्यों?
उदाहरण से समझिए – एक विद्यार्थी को 2 विषयों साइंस एवं इंग्लिश में क्रमशः 27-27 नंबर आने पर उसे सप्लीमेंट्री घोषित किया गया, जबकि एक अन्य विद्यार्थी को जिसे दो विषयों साइंस एवं मैथ्स में क्रमशः 29-29 नंबर अंक मिलने के बावजूद फेल कर दिया गया। यह भेदभाव क्यों?
दरअसल, यह विरोधाभास, यह भेदभाव उसी बेतुके नियम की वजह से हो रहा है।

अंग्रेजी के अलावा दो विषयों में कम नम्बर आने पर फेल घोषित किए गए एक परीक्षार्थी की मार्कशीट।

यह है बेतुका नियम

 किसी परीक्षार्थी को अगर दो विषयों में कम अंक मिले हैं और उन विषयों में अगर इंग्लिश शामिल है तो उसे सप्लीमेंट्री घोषित कर दिया जाता है। अगर इंग्लिश के अलावा किन्हीं दो विषयों में कम अंक आते हैं तो उसे सीधे फेल घोषित कर दिया जाता है, यानी सप्लीमेंट्री की रियायत पाने के लिए कम अंक वाले विषयों में इंग्लिश सब्जेक्ट होना जरूरी है। यही वह बेतुका नियम है जिसमें इंग्लिश विषय को खास नजर से देखा जाता है।
वैसे उत्तीर्ण होने के लिए आवश्यक नम्बरों में 6 नंबर कम होने तक बोर्ड परीक्षार्थी को ग्रेस देकर पास कर देता है। इसके बाद बोर्ड दो विषयों में कम अंक आने पर उसे सप्लीमेंट्री परीक्षा के योग्य घोषित करता है, बशर्ते इन दो विषयों में एक विषय अंग्रेजी होना चाहिए। यदि अंग्रेजी नहीं है और दो अन्य विषयों में अभ्यर्थी के नंबर कम हैं तो वह फेल माना जाएगा। इस साल भी कई बच्चे इस नियम का शिकार हो गए हैं।

प्रबुद्धजन को करना होगा पुनर्विचार

होना यह चाहिए कि बोर्ड अपने इस बेतुके नियम की समीक्षा करे। केवल अंग्रेजी विषय को खास नजरिए से देखने का कारण आम परीक्षार्थी एवं अभिभावकों को समझ नहीं आ रहा है। अंग्रेजी की अनिवार्यता क्यों? किसी भी दो विषयों में कम नम्बर आने पर उसे पूरक परीक्षा देने का अवसर क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? अगर राज्य सरकार और शिक्षा बोर्ड के प्रबुद्ध कर्णधार इस बारे में गम्भीरता से मंथन करें तो कई नौनिहालों का कीमती एक साल बर्बाद होने और अभिभावकों की गाढ़े पसीने की कमाई जाया होने से बच सकेगी।
अब भी ज्यादा पानी नहीं बहा है.. वक्त पर गलती सुधारने से बड़ा कोई पश्चाताप नहीं होता। शिक्षा बोर्ड अगर इस बार यह बेतुका नियम हटाकर फेल हुए परीक्षार्थियों के रिजल्ट को री-शफल करे तो हजारों बच्चों की दुआ मिलेगी।

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