सन्तोष खाचरियावास @ अजमेर
इस बार 400 पार… पीएम नरेंद्र मोदी ने अति आत्मविश्वास से यह नारा देकर विपक्ष को पूरी ताकत समेट मैदान में उतरने को मजबूर कर दिया है। भाजपाइयों को भी लक्ष्य आसान लग रहा था। राजस्थान में सभी 25 सीटें तीसरी बार जीतकर बीजेपी हैट्रिक बनाने का ख्वाब बुन रही थी कि पहले चरण के मतदान ने ख्वाबों के फूकणे में सुराख कर दिया। कांग्रेस ने सीधा तुर्रा छोड़ा कि कम मतदान मतलब बीजेपी की हार… बीजेपी के वोटर्स घर से नहीं निकले।
उधर बीजेपी ने भी मान लिया कि कम मतदान से उसे ही नुकसान है। लिहाजा तमाम नेता 26 अप्रैल को दूसरे चरण के मतदान को लेकर कार्यकर्ताओं को एक ही पट्टी पढ़ा रहे हैं -‘वोटर्स को धूप चढ़ने से पहले सुबह सुबह ही घर से निकालो।’ मोदी ने नया नारा लॉन्च किया- पहले मतदान फिर जलपान।
खामख्वाह का शोर
अब मतदाता इस बार भी घर से निकलेंगे या नहीं, यह उनकी मर्जी पर निर्भर है। अलबत्ता कम मतदान प्रतिशत ने उन सरकारी कारिंदों की पोल भी खोल दी है जो ‘स्वीप’ की आड़ में महीनेभर से मजे मार रहे हैं। मतदाता जागरूकता अभियान के नाम पर किन्नरों की हवेली में बार बार धोक दे रहे थे। स्कूली बच्चों को धूप में बैनर तख्तियां पकड़ाकर अखबारों में अपनी फोटो छपवा रहे हैं।
भाई, जनता खुद जागरूक है। मर्जी होगी तो खुद वोट डालने जाएगी। किसी के कहने या रैली निकालने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
पेमेंट अपनी जगह, फुल पेंट अपनी जगह!
अब बात बीजेपी के ओवर कॉन्फिडेंस की। अजमेर में कल कुछ नेता बतिया रहे थे- भागीरथ जी पिछली बार 4 लाख से ज्यादा वोटों से जीते थे, कोई बात नहीं इस बार 2 लाख वोटों से तो जीत ही जाएंगे। यह सुनकर एक पुराने संघी ने उन्हें फटकार लगाई- ‘एक तरफ मोदी पूरे आत्मविश्वास से 400 पार की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ आप लोग पिछली बार से भी कम वोट मिलने की उम्मीद लगाए बैठे हो, शर्म आनी चाहिए। तुमसे अच्छे तो कांग्रेसी हैं जो बिना गोला बारूद ही जंग जीतने की कोशिश में जुटे हैं, उनके हौसले से तो सबक लो।’
सच यह है कि इस बार बीजेपी की फौज फुल ओवर कॉन्फिडेंस में है, शायद मोदी से भी ज्यादा। यही वजह है कि वे अब तक मतदाताओं के घरों तक नहीं पहुंचे हैं। केवल पार्टी कार्यालय और सोशल मीडिया पर उनकी उपस्थिति दिख रही है। मोदी की योजनाएं केवल अखबारों और सोशल मीडिया पर प्रचारित हो रही है। घर घर जाकर योजनाओं की जानकारी पहुंचाने का आह्वान, सिर्फ आह्वान बनकर रह गया है। अगर किसी के घर अब तक एक भी भाजपाई वोट मांगने पहुंचा हो तो बता दीजिए। पोलिंग बूथ पर एजेंट बैठाने के लिए प्रति आदमी 15 सौ रुपए और खाना, चाय-पानी मांगा जा रहा है। बड़ी पार्टी, बड़े शौक, बड़ा खर्चा।
अब ये पैसे के पुर्जे कितना साथ देंगे, इस पर संघ के ‘बूढ़ों’ को ही भरोसा नहीं रहा। गत दिनों ‘जनकपुरी’ में व्यूह रचना तैयार हुई। जवान बेटों पर विश्वास न करके उनके पिताओं ने बूथ की जिम्मेदारी उठाने की ठानी। सुबह जल्दी जगने वाले ‘प्रौढ़’ अब कल मतदाताओं को जल्दी से जल्दी बूथ तक पहुंचाते नजर आएंगे।
कांग्रेसी भी सरेंडर
उधर, कांग्रेस यह चुनाव अपनी बची खुची जमीन बचाने के लिए पूरे जी जान से लड़ रही है। कांग्रेसी पहली बार बिना खर्चा पानी लिए मैदान में तलवार भांज रहे हैं। यूथ कांग्रेस को घर घर पहुंचने का टारगेट मिला है और इसकी पुख्ता ऑनलाइन मॉनिटरिंग भी हो रही है। यानी इस बार कांग्रेसी पूरी तरह से धरातल पर सक्रिय हैं जबकि भाजपाई आसमां पर!
यही वजह है कि कछुआ अब खरगोश की बराबरी पर चुका है। मुकाबला कांटे का हो गया है। कल कांग्रेसियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी पर बरसने के बाद मीडिया के सामने हाथ जोड़ लिए। कहा- ‘हमने तो अपनी तरफ से पूरी मेहनत कर ली। अब इज्जत आपके हाथ में है।’