सन्तोष खाचरियावास
नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी (BJP) को बुरी हार का सामना करना पड़ा है। सूबे की सत्ता अब कांग्रेस के हाथ में चली गई है। आंकड़ों को देखें तो चुनाव में कांग्रेस ने 135 सीटों पर जीत दर्ज की। 2018 में कांग्रेस को 80 सीटें मिली थीं। वहीं, भाजपा 104 से 66 सीटों पर सिमट गई। जेडीएस को भी 18 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। जेडीएस के केवल 19 प्रत्याशी ही चुनाव जीत पाए। चार सीटें अन्य के खाते में गईं।
चुनाव नतीजों ने भाजपा को एक बड़ी चिंता भी दे दी है। वह यह है कि अगर यही हाल रहा तो अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को बड़े नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
बीजेपी की जबरदस्त हार के पीछे हर लॉबी अपने एंगल से समीक्षा कर रही है। कोई पुरानी पेंशन योजना की मांग को जिम्मेदार ठहरा रहा है तो कोई साम्प्रदायिक को। कोई राहुल की भारत जोड़ो यात्रा के गुणगान कर रहा है तो कोई विपक्षी एकता का। असलियत में महंगाई ही मार गई।
जिसके नाम में ही मद छिपा हो उसे तो अहंकार से और भी सजग रहना चाहिए। मगर ऐसा नहीं हो सका। अपनी लकीर बढाने की बजाय दूसरों की लकीर छोटी करना, मध्यम वर्ग को महंगाई की आग में झोंककर अपने फक्कड़ अंदाज में सबको रंगने की कोशिश भारी पड़ गई। वास्तविकता से मुंह फेरना महंगा पड़ गया। अब नवम्बर में होने वाले दूसरे राज्यों के चुनाव में भी महंगाई का मुद्दा क्या गुल खिलाएगा, यह वक्त बताएगा।