नई दिल्ली। अंतरिक्ष कार्यक्रमों में अमेरिका की होड़ कर रहे चीन ने लाल ग्रह पर एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। चीन ने दावा किया है कि उसके रोवर जुरोंग ने मंगल ग्रह पर पानी ढूंढने में सफलता हासिल कर ली है।
वैज्ञानिकों का लंबे समय से मानना है कि लगभग तीन अरब साल पहले मंगल ग्रह पर पृथ्वी जैसी जलवायु थी और इसकी सतह पर एक महासागर बह रहा था, जो वर्तमान शुष्क और बंजर सतह से बहुत अलग है।
हालांकि, उन्हें इस बात से हैरानी हुई कि यह सारा पानी कहां चला गया। अब तक मंगल ग्रह पर तरल पानी की उपस्थिति का अनुमान लगाया जाता रहा है मगर इसका कोई सबूत नहीं दिया गया।
वैज्ञानिकों के मुताबिक शुक्रवार को यह नई खोज मंगल के विकासवादी इतिहास को समझने के लिए एक बड़ी सफलता है क्योंकि यह अतिरिक्त-स्थलीय जीवन के लिए भविष्य के संभावित सुराग प्रदान कर सकता है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि रोवर ने सीधे तौर पर पाले या बर्फ के रूप में किसी भी प्रकार के जल श्रोत का पता नहीं लगाया है, बल्कि इसने दरारों और पपड़ी वाले नमक से भरपूर टीलों की मौजूदगी देखी है। उन्होंने कहा कि चूंकि मंगल ग्रह पर तापमान बेतहाशा बढ़ता है इसलिए खारे पानी का वाष्पीकरण हो जाता है।
चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के प्रोफेसर किन शियाओगुआंग ने कहा, “यह मार्टिन जलवायु के विकासवादी इतिहास को समझने, रहने योग्य वातावरण की तलाश करने और जीवन के लिए भविष्य की खोज के लिए महत्वपूर्ण सुराग प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण है।”
इससे पहले फरवरी में नासा ने मंगल पर दुर्लभ क्षेत्र में बेहद पहले पानी की झीलें होने का दावा किया था। नासा एजेंसी ने एक चट्टान की बनावट से अंदाजा लगाया और बताया कि पानी बड़ी मात्रा में मौजूद रही है। यह साक्ष्य नासा के क्यूरियोसिटी रोवर ने खोजा जो कि लगभग दस सालों से मंगल पर सक्रिय है।