पूर्णिया। बनमनखी प्रखंड के मलिनिया गांव में एक ऐसा मेला लगता है, जहां लड़का-लड़की अपने पसंद से रिश्ता तय करते हैं। अगर लड़की ने पान खा लिया तो समझो रिश्ता तय हो गया। जी हां! इस मेला का नाम है पत्ता मेला। आदिवासी समुदाय का एक खास मेला होता है। यहां दूर-दूर से आदिवासी युवक और युवतियां आते हैं।
बनमनखी प्रखंड के मलिनिया मिडिल स्कूल स्थित खेल के मैदान में लगने वाले तीन दिवसीय आदिवासी मेला में एक सौ से अधिक युवक-युवतियों ने एक दूसरे को पसंद कर सात जन्मों तक साथ रहने की कसमें खाकर खुशी-खुशी विदा हुई।
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48 घंटे के उपवास के साथ शुरू होने वाले इस मेले में बिहार, बंगाल, झारखंड , उड़ीसा और नेपाल के आदिवासी समुदाय के लोग जुटते हैं। खासकर इस मेला में नए कपल एक दूसरे को पसंद कर शादी की बात तय कर लेते हैं । हालांकि इस दौरान शादी के लिए हां भरने की परंपरा कुछ अलग ही है।
मलिनिया गांव के ही रहने वाले पितांबर उरांव बताते हैं कि मलिनिया में प्राचीन काल से ही मनपसंद जीवनसाथी ढूंढने की परंपरा चलती आ रही है । उसके लिए स्वयंवर कराया जाता है, जिसमें युवती अपने पसंद के वर का चयन करती है । यदि युवक के हाथ से दिया हुआ पान युवती खुशी-खुशी खा लेती तो इसे शादी के लिए राजी मान लिया जाता है।
मेला का आयोजन मुख्य रूप से वतनलाल टूडू के द्वारा पिछले कई सालों से किया जा रहा है। यह मेला पत्ता मेला के नाम से मशहूर है। युवा आनंद लकड़ा बताते हैं कि अब इस समुदाय के लोग भी शिक्षित होने लगे और यही वजह है कि इस तरह के मेले में लोगों की संख्या कम जुटने लगी है।
इकरार के बाद इंकार करने पर सजा के साथ जुर्माना
मेले में पसंद आने के बाद दोनों में से कोई शादी से इंकार करता है तो फिर आदिवासी समुदाय के लोग उन्हें कड़ा दंड देते हैं और जुर्माना भी वसूलते हैं। सभ्यता और संस्कृति का संवाहक मेले में लिए गए निर्णय को तोड़ने का हक किसी को नहीं दिया जाता है।