जयपुर. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी के शिष्य आनंद गिरि और हनुमान मंदिर के पुजारी अद्या तिवारी को अदालत ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेजा है। महंत की सन्दिग्ध मौत को लेकर चर्चा में आए आनंद गिरि की कहानी बड़ी रोचक है।
अशोक का गरीब परिवार मजदूरी करके पेट पालता था. बचपन से ही अशोक के मन में बड़ा बनने का ख्वाब था. पढ़ाई में वह कमजोर था, लेकिन महत्वाकांक्षा बड़ी थी. साल 1996 में सातवीं क्लास में पढ़ने वाले एक बालक अशोक चोटिया को समय पर होमवर्क नहीं करने और पढ़ाई नहीं करने पर शिक्षक ने चांटा मारा. अशोक टीचर की पिटाई से क्रोधित हो गया. घर से भागकर प्रयागराज पहुंच गया. यहीं उसकी मुलाकात नरेंद्र गिरि से हुई और वह उनका शिष्य बन गया.
अशोक के बचपन के सखा धर्मेंद्र बताते हैं कि अशोक बड़ा बनने के सपने बुनता था और एक दफा इसी सपने को पूरा करने के लिए वह अहमदाबाद में अपने भाई के पास से भाग गया. घरवालों ने काफी तलाश की. अशोक के पिता रामेश्वर लाल चोटिया ने बेटे के लौटने की उम्मीद में पास के ही चारभुजा नाथ मंदिर में पूजा अर्चना शुरू की. सात साल तक करते रहे.
आखिरकार एक दफा अशोक को खोजने के लिए कुंभ मेले में गए. जहां खबर मिली थी कि अशोक साधु हो गया है. लेकिन मिला नहीं. कुछ वक्त बाद घर वालों को पता चला कि नरेंद्र गिरी के आश्रम में है. इस बीच में नरेंद्र गिरी ने अशोक के पिता को यह सूचना दे दी कि उनका बेटा उनके पास है. नरेंद्र गिरी को अशोक हरिद्वार में मिला था. नरेंद्र गिरी ने अशोक को दीक्षा दी और अपना शिष्य बना लिया.
उसके बाद में योग, संस्कृत की उसे शिक्षा दिलवाई. अशोक के यह कहने पर कि वे दूसरे शिष्यों से अलग अंग्रेजी की भी शिक्षा चाहता है तो उसे अंग्रेजी की शिक्षा दिलवाई. इस बीच में नरेंद्र गिरी ने अशोक के पिता से बात की. पिता ने इच्छा जताई की एक दफा अशोक को उसके परिवार से मिला दे. दूसरी तरफ नरेंद्र गिरी के मन में था कि एक संत के लिए अपनी मां से भिक्षा लेना जरूरी है. तभी सन्यास पूर्ण होता है. नरेंद्र गिरी 2013 में अपने शिष्य अशोक उर्फ आनंद गिरी को लेकर उसके पैतृक गांव भीलवाड़ा के ब्राह्मणों की सरेरी पहुंचे.
आनंद गिरि अपने पैतृक गांव में गुरु के साथ पहुंचा तो पूरा गांव उसे देखने के लिए इकट्ठा हुआ. कैसे अशोक साधु बन गया और पूरे लाव लश्कर के साथ गुरु के साथ पहुंचा था. पैतृक गांव में मां से भिक्षा दिलवाने के बाद नरेंद्र गिरी अशोक को लेकर वापस प्रयागराज पहुंच गए. अशोक चोटिया के आनंद गिरि बनने से भी उसके परिवार की आर्थिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं है. अशोक के पिता रामेश्वर लाल किसानी करते थे और अब भी कर रहे हैं.
अशोक के तीन और भाई हैं. तीनों ही उससे बड़े दो अमदाबाद में मजदूरी कर रहे हैं और सबसे बड़ा भाई भंवर लाल गांव में ही सब्जी और आइसक्रीम का ठेला लगाता है. भंवर लाल को लगता है कि उसका भाई अब उन जैसा नहीं रहा अमीर हो गया. जब भंवरलाल से पूछा कि क्या कभी उनके भाई ने उनकी मदद की ? भंवरलाल ने कहा कि भाई से बात जरूर होती है लेकिन पैसों का संबंध नहीं रहा.
भंवरलाल ने कहा कि लोग कहते हैं कि 2 करोड़ रुपए उनके भाई ने उनको दिए. अगर ऐसा होता तो वह दिखता. हमारी आर्थिक स्थिति इतनी खराब नहीं होती कि बैंक खाते में पैसे नहीं और घर में खाने का सामान नहीं. भंवरलाल ने कहा कि भले ही उनके भाई से उनका कोई और नाता नहीं रहा हो लेकिन यह यकीन यकीन जरूर है कि वह चरित्रहीन नहीं होगा. अपने गुरु को इतना प्रताड़ित नहीं करेगा कि वह खुदकुशी के लिए मजबूर हो जाए.
भंवरलाल ने कहा कि आनंद गिरि अपने गुरु से निश्चित रूप से बहुत प्रेम करता था. अत्यधिक लगाव भी था. जब भंवरलाल से पूछा अगर भाई के प्रति इतना भरोसा है तो फिर कैसे वह संत की मर्यादा के विपरीत एक ऐशो—आराम की जिंदगी जी रहा था ? उसने कहा कि इससे उसके चरित्र को नहीं आंका जा सकता. उसमें मेरा खून है और मेरे भाई का खून ऐसा गिरा हुआ नहीं हो सकता.
गांव के लोग भी आनंद गिरी के ऐशोआराम और बड़े संत के रूप में देखकर अचंभित जरूर हैं? लेकिन उन्हें भी यह भरोसा है कि उनके गांव के संस्कार इतने कमजोर नहीं हो सकते कि वह इतना गिर जाए. आनंद गिरि आखिरी बार अपने घर 6 महीने पहले आया था, जब उसकी मां का निधन हो गया था. गांव वालों का कहना है कि वह पूरी रात अपने मां के शव के पास बैठा था. फिर गांव के लोगों के कहने पर पूरे गांव में एक चक्कर लगाया उस दौरान पूरे गांव में बड़ी दक्षिणा दी थी. लेकिन वह अपने साथ एक भी पैसा लेकर नहीं गया.
आनंद गिरि के पिता रामेश्वर लाल चोटिया से जब पूछा कि आखिर साधारण से परिवार मैं पैदा हुआ उनका बेटा कैसे इतने अलग रास्ते पर चला और इतना वैभवशाली बन गया. उसके पिता रामेश्वर लाल ने बताया कि एक दफा प्रयागराज में उन्हें कुछ संतो ने बताया की आनंद गिरि एक दफा आश्रम छोड़कर गंगा के किनारे जाकर तपस्या करने लगा. 22 दिन तक तपस्या की तो उसे साक्षात भगवान शंकर के दर्शन हुए और उन्होंने उसे इस तरीके से सबसे अलग यशस्वी बनने का आशीर्वाद दिया था. यह सब भगवान शंकर के आशीर्वाद का नतीजा है.