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कोरोना का असर सितम्बर-अक्टूबर तक कम होने के आसार

नई दिल्ली। कोरोना महामारी जिस रफ्तार से दायरा बढ़ाती जा रही है वह यह संकेत देता है कि इससे हाल-फिलहाल में राहत नहीं मिलने वाली है। अब देश में हर दिन 20 हजार से भी अधिक मामले आने शुरू हो गए हैं। आज लोग घरों से निकल तो रहे हैं लेकिन उनके दिलो-दिमाग में डर और भय इस कदर समा गया है कि कब, कहां और किस प्रकार यह खतरनाक वायरस अपने आगोश में ले ले। पहले यह कहा जा रहा था कि जुलाई तक यह महामारी धीरे-धीरे अपने ढलान पर आएगी इससे देशवासियों को एक आशा की किरण बंधी हुई थी। लोगों के जेहन में यह चलने लगा था कि 2 या 3 महीने का खराब दौर है, चलो इसको किसी प्रकार से गुजार लेते हैं।

लेकिन अब जिस प्रकार से यह महामारी दहशत का माहौल बनाती जा रही है उससे लोगों की उम्मीदें भी टूट रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया में कोरोना का संकट गहराता जा रहा है। कुछ देशों में मामले जरूर कुछ कम हुए हैं, लेकिन ऐसे कई देश हैं जहां मामला बढ़ने का खतरा बरकरार है। भारत भी धीरे-धीरे अब संक्रमित मामलों में तेजी के साथ बढ़ता जा रहा है।‌ इस समय अपना देश अमेरिका, ब्राजील, रूस के बाद चौथे नंबर पर आ खड़ा हुआ है। डर की वजह से आज देश का प्रत्येक नागरिक खुलकर अपनी जिंदगी नहीं जी पा रहा है। काम, व्यापार, नौकरी छोटे-मोटे धंधे आदि गई बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।

लोग मूलभूत जरूरतों के लिए घर से निकलने में डरने लगे हैं। देशभर में लाखों लोग ऐसेे भी जो किसी न किसी बीमारी से पीड़ित हैं वे डॉक्टर को दिखाने क्लीनिक या अस्पताल भी नहीं जा पा रहे हैं, उनको डर लगता है कहीं इस खतरनाक वायरस की चपेट में न आ जाएं। लोगों की आजादी, मस्ती, जिंदगी का खुलापन इस महामारी ने छीन लिया है। अब जब इस महामारी के तमाम वैज्ञानिक, एक्सपर्ट और डब्ल्यूएचओ बताने में लगे हुुए हैं कि अभी कोरोना का कहर लंबा चलने वाला है तो लोगों में तनाव भी आने लगा है। यही नहीं उनकेे दिमाग में एक बात और बैठ गई है कि आने वाले दिनों में यह महामारी हालात और भी भयावह कर सकती है।‌

देशवासियों की बंधी-बंधी जिंदगी और सोशल डिस्टेंसिंग की नहीं है आदत

हमारे देश में लोग इस महामारी आने के बाद जिस प्रकार से जिंदगी जी रहे हैं, दरअसल उनको ऐसी आदत नहीं थी। मास्क चेहरे पर लगाना, सैनिटाइजर लेकर घूमना, बार-बार हाथ धोना इसके साथ सोशल डिस्टेंसिंग के साथ जीवन जीना। सही मायने में देश का नागरिक ऐसी जिंदगी जीने के लिए तैयार ही नहीं था, वह तो मस्तमौला अंदाज में जीता आया है। चौराहे पर गप्पे मारना राजनीति की बातें करना, शादी समारोहों में खूब खुलकर इंजॉय करना, एक दूसरे से हाथ मिलाना, गंगा नहाना, धार्मिक स्थलों पर जाना बसों-ट्रेनों में भीड़ के बीच में यात्रा करना बाजारों में जाकर शॉपिंग करने जाना, ऐसा रहा है भारतीयों का जीवन।

लेकिन अब पिछले कुछ महीनों से यह सब मनुष्य के जीवन में अतीत की बातें होती जा रही है। आए दिन केंद्र और राज्य सरकारें लोगों को इस महामारी से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग, घरों में रहने सलाह देती रहती है। सोशल डिस्टेंसिंग का ये दौर लंबे समय तक समय तक चलने वाला है। अमेरिका, फ्रांस रूस के तमाम एक्सपर्टो ने तो सोशल डिस्टेंसिंग के लिए बाकायदा कम से कम 2 साल तक गाइड लाइन तय की है। यानी इतने समय तक इस महामारी से बचने के लिए लोगों को इस नियम का कड़ाई से पालन करना होगा। ऐसे ही भारत में भी कहा जा रहा है कि सोशल डिस्टेंसिंग ही लोगों को संक्रमित होने से बचा सकती है।

सितंबर-अक्टूबर तक इस महामारी के प्रभाव कम होने के किए जा रहे हैं दावे

यह खतरनाक वायरस भारत से कब खत्म होगा बस यही सवाल देशवासियों के मन में हर दिन बना रहता है। अब जो नए दावे जो किए जा रहे हैं वह सितंबर और अक्टूबर तक इस महामारी का प्रभाव देश से कम होने को लेकर है। बता दें कि स्वास्थ्य मंत्रालय के दो जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह दावा किया है, जिन्होंने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए गणितीय प्रारूप पर आधारित विश्लेषण का सहारा लिया। विश्लेषण से यह प्रदर्शित होता है कि जब गुणांक 100 प्रतिशत पर पहुंच जाएगा तो यह महामारी खत्म हो जाएगी। यह विश्लेषण ऑनलाइन जर्नल एपीडेमीयोलॉजी इंटरनेशनल में प्रकाशित हुआ है।

यह अध्ययन स्वास्थ्य मंत्रालय में स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय (डीजएसएच) में उप निदेशक (जन स्वास्थ्य) डॉ अनिल कुमार और डीजीएचएस में उप सहायक निदेशक रूपाली रॉय ने किया है। उन्होंने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए बेली के गणितीय प्रारूप का इस्तेमाल किया। यह गणितीय प्रारूप किसी महामारी के पूर्ण आकार के वितरण पर विचार करता है, जिसमें संक्रमण और इससे उबरना शामिल हैं।

यह प्रारूप निरंतर संक्रमण प्रकार के रूप में प्रयुक्त किया गया, जिसके संक्रमित व्यक्ति संक्रमण के स्रोत तब तक बने रहेंगे, जब तक कि इस चक्र से वे संक्रमण मुक्त नहीं हो जाते हैं या उनकी मौत नहीं हो जाती है। लेकिन तब तक सोशल डिस्टेंसिंग और होम क्वारंटीन का पालन करना होगा। आज हम तकनीक के सुनहरे दौर में हैं, जहां हम एक ही समय में सारी दुनिया से जुड़ सकते हैं। अगर कोरोना को हराना है और स्वस्थ रहना है, लंबे समय तक सोशल डिस्टेंसिंग बनाना होगा। मान लिया जाए कि इस महामारी ने जीवन में कुछ ब्रेक लगा दिया है लेकिन जान से बड़े नहीं हो सकते हैं। जिंदगी रहेगी तो सब कुछ रहेगा, यह लोगों को समझना होगा।

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