न्यूज नजर : 26 अप्रेल 2020 को अक्षय तृतीया है। ” आखा तीज ” अपना रूप निखार कर और सज धज कर अपने लाव लश्कर के साथ वैशाख के पावन मास पर किसी को कन्या दान कराने तथा किसी को अन्न दान जल दान
कराने के लिए जैसे ही धरती पर उतरी तो एकदम वह सहम गयीं। अपनी सिर की ओढ़नी से तुरंत उसने अपने मुंह को ढक लिया। कोरोना महामारी के संकट को वह पृथ्वी पर देख कर डर गयी और सोचने लग गयीं अरे यह क्या हुआ। पृथ्वी पर रहने वाला मानव बिल्कुल नजर नहीं आ रहा है और लाखो लोग इस बीमारी से मर चुके हैं और कई लाख व्यक्ति इस के संक्रमण से पीड़ित हो रहे हैं। पृथ्वी पर सब कुछ ठीक नहीं चला रहा है। यह देख उसने अपने लाव लश्कर पर भी पर्दा डाल कर ढक दिया और चुपचाप निकलती जा रही है कि अभी मैं रास्ते में ही हूं और थोडे दिन बाद ही मेरी तीज आने वाली है। कही मुझे देख कर कोई मचल ना जाये
भारतीय ग्रामीण संस्कृति में वैशाख मास को परम जन कल्याण माना जाता है। इस मास में फसल कट कर घरों में आ जातीं हैं और आर्थिक स्थिति मजबूत हो जातीं हैं। इस माह से ही नये सौर वर्ष का सूर्य अत्यधिक गर्मी का आगाज कर देता है कि अब पानी के नदी नाले कुएँ बाबडी और तालाब गर्मी से सूखने लग जायेगे व पेयजल की कमी होने लग जायेंगी। राहगीर को आने जाने में पानी और छाया की वजह से भारी परेशानियाँ होगी। पशु जीव जन्तु सभी पानी के लिए त्राहि त्राहि करने लग जायेंगे।
इन्ही स्थितियों को देख कर जीव व जगत के कल्याण की भावना जाग्रत होतीं हैं तथा मानव यथासंभव दान पुण्य तथा सेवा की भावना से इस महिने को कल्याण कारी मानता है और विवाह आदि जैसे मांगलिक कार्यों को भी करता है। इसी मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को आखा तीज माना जाता है तथा यह मान्यता बन गयी कि इस दिन किये गये दान पुण्य का क्षय नहीं होता है और अन्न दान जल दान व कन्या दान के लिए यह तिथि अबूझ मुहूर्त बन गयीं। ग्रामीण संस्कृति मे हजारों विवाह इस अबूझ मुहूर्त में होते हैं।
कोरोना महामारी के बीच इस मास के आने के कारण सम्पूर्ण भारत में लोक डाऊन है और सभी लोग घर में ही बैठे तथा सोशल डिसटेसिग बनाये हुए हैं ऐसे में किसी तरह के समारोह का आयोजन नहीं किया जा सकता है।
कोरोना महामारी के संकट ने संस्कृति के धार्मिक, सामाजिक और सभी क्षेत्रों में मनाये जाने वाले उत्सवो , संस्कारों , मांगलिक कार्यों तथा कई तरह के सम्मेलनों के आयोजन को लोक डाऊन कर दिया है तथा मानव सभ्यता ओर संस्कृति को यह संदेश दिया है कि हे मानव तुझे मध्यम मार्ग का ही सहारा लेना चाहिए क्यो कि विपत्ति काल में हर मर्यादा का नाश होता है। ना चाहते हुए भी उस वक्त और हालातों से समझोता करना ही पडता है क्यो कि सबसे पहले जीवन है और उसके बाद यह दुनिया ओर उसकी संस्कृति के सिद्धांत है। आज विश्व स्तर पर मानव घर में इस महामारी के संकट के कारण घर में ही बैठ कर जीवन को सुरक्षित कर पा रहा है। घर से बाहर और भीड़ के बीच में यह महामारी अपना विकराल रूप संक्रमित करती हुई ले लेती है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव अक्षय तृतीया का यह अर्थ कदापि नहीं होता है कि तू आयोजन, सम्मेलन कर के भीड बढा और सबको इकट्ठा कर के दान पुण्य कर तथा विवाह आदि कर। धार्मिक मान्यता तो इस दिन दान पुण्य को अक्षय मानती है तो तू घर में बैठा बैठा भी आस पड़ोस में जरूरत मंद लोगो को भोजन सामग्री उपलब्ध करवा। जल के लिए पानी की व्यवस्था करवा। मवेशियों के लिए चारा पक्षियों के लिए दाने की व्यवस्था करवा तथा असहाय लोगों की यथा संभव मदद कर।अक्षय तृतीया का भले ही पुण्य मिले या नहीं मिले लेकिन जरूरत मंद लोगो को सहायता मिल जायेंगी और तेरा कर्म मानव धर्म की सेवा में एक यादगार छोड़ जायेगा।
इसलिए हे मानव तू कोरोना महामारी के संकट में और भारत लोक डाऊन के कारण मांगलिक कार्यों ओर उसके सम्मेलनों के आयोजनों की बात दिल में मत सोच और इस आखा तीज को चुपचाप ही निकल जाने दे। कोरोना महामारी के संकट के समय सोशियल डिस्टेंसिंग बनाये रखना जरूरी है।