न्यूज नजर : अपने अधिकारों से उत्पात मचाता हुआ और दायित्वों से बचता व्यक्ति सर्वत्र हर क्षेत्रों पर जब मर्यादा से भी आगे बढकर अतिक्रमण करने लग जाता है तो ऐसा लगता है कि यह व्यक्ति इंसानी हरकत नहीं शैतानी हरकतों पर उतर गया है।
वह अपने भूतकाल के हर अवगुणों को सजाता हुआ स्वयं भी वर्तमान न रहकर भूत काल का भूत बन जाता है और भविष्य को भी वर्तमान में भूतकाल बनाने का मसौदा तैयार कर सृष्टि के नौ खंडों पर उत्पात मचाता भूतों का बादशाह बन जाता है।
यह जिन्दा भूतों का बादशाह सर्वत्र जाल बिछाकर रूहानियत की खुशबू को शैतानियत की बदबू से भर देता है और हर क्षेत्र प्रदूषित कर सर्वत्र बर्बादीयों के मेले लगवा देता है, फिर जहरीले ठहाकों से भूतों को पूजवाने के लिए उस मेले में “भूतिया ईत्र” की दुकानें खुलवा देता है और भगवान को भगाने का नाकाम प्रयास करता है।
जमीनी धरातल पर भी ऐसा ही होता है जब कोई अपने अधिकारों का दुरूपयोग करने लग जाता है और अपने दायित्व से भागने लगता है तो उसके इस कृत्य से सर्वत्र परेशानियां आ जातीं हैं और त्राहि त्राहि मचने लग जाती है, तब वो व्यक्ति नई समस्या पैदा कर सबको भटका देता है और मूल समस्या दफन कर देता है। हर बार ऐसा होने से आम जन अत्यधिक पीडित हो जाते हैं और समय के खेल को देखते रहते हैं।
कुछ ऐसा ही हुआ लंका के मैदान में जब रावण का कहर बरसा और धूर्तता की संस्कृति को परिभाषित कर उसने दुनिया को संदेश दिया कि इस पूरे जगत में मै ही बलवान हूं और विद्वान हूं, राजा हूं, बाकी सब नच गईया हैं।
रावण ने अधिकारों का दुरूपयोग तो कर लिया पर अपनें कर्तव्य को निभा नहीं पाया। रावण की मौजूदगी में परमवीर हनुमान जी ने अकेले ही लंका नगरी को नष्ट विनष्ट कर दिया उसके बलवान पुत्र को मार डाला।
संत जन कहते हैं कि हे मानव जो व्यक्ति अपने दायित्वों को निभाने से मुंह मोड़ लेता है तो वह व्यक्ति भले ही किसी भी भूमिका में क्यों ना हो उसका पतन कुंठा की आग और घुटन की कसमसाहट कर देती हैं चाहे वह सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और वैज्ञानिक कोई भी क्षेत्र क्यो ना हो। वहां हनुमान रूपी देव अचानक प्रकट होते हैं और अधिकारों का दुरूपयोग व दायित्वों का निर्वहन नहीं करने वालों की स्वर्ण नगरी को जला देते हैं।
इसलिए हे मानव तू अपनी हर भूमिका के दायित्व को भलीभांति निभा नहीं तो तेरा, तेरे घर में ही पतन हो जाएगा फिर भले ही तू घर का मुखियां हो या दुनिया का।