नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा की जाती है। इसे महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के तौर पर भी जाना जाता है, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इस पर्व को उगादि के रूप में मनाया जाता है। बता दें कि साल में मुख्य रूप से दो नवरात्र आती हैं जिसमें से चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र होती हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्र हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होते हैं। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल मार्च या अप्रैल के महीने में आते हैं, इस बार चैत्र नवरात्र 25 मार्च 2020 से शुरू होकर 2 अप्रैल 2020 को खत्म हो रहे हैं। वहीं राम नवमी 2 अप्रैल 2020 को मनाई जाएगी।
हिंदू शास्त्रों में नवरात्र का महत्व
साल में चार बार नवरात्र आती है,आषाढ़ और माघ में आने वाले नवरात्र गुप्त नवरात्र होते हैं जबकि चैत्र और अश्विन प्रगट नवरात्रि होती हैं नवरात्र चैत्र के ये नवरात्र पहले प्रगट नवरात्र होते हैं, चैत्र नवरात्र से हिन्दू वर्ष की शुरुआत होती है। वहीं शारदीय नवरात्र के दौरान दशहरा मनाया जाता है। बता दें कि हिन्दू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। नवरात्र का त्योहार पूरे भारत में मनाया जाता है। उत्तर भारत में नौ दिनों तक देवी मां के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है,भक्त पूरे नौ दिनों तक व्रत रखने का संकल्प लेते हैं।
पहले दिन कलश स्थापना की जाती है और अखंड ज्योति जलाई जाती है। फिर अष्टमी या नवमी के दिन कुंवारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है। चैत्र नवरात्र के आखिरी दिन यानी कि नवमी को राम नवमी कहते हैं, हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म हुआ था। रामनवमी के साथ ही मां दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी होता है। रामनवमी के दिन पूजा की जाती है, इस दिन मंदिरों में विशेष रूप से रामायण का पाठ किया जाता है और भगवान श्री राम की पूजा अर्चना की जाती है। साथ ही भजन-कीर्तन कर आरती की जाती है और भक्तों में प्रसाद बांटा जाता है।
नवरात्र पर व्रत और पूजा-पाठ कैसे करें
अगर आप भी नवरात्रि के व्रत रखने के इच्छुक हैं तो इन नियमों का पालन करना चाहिए। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना कर नौ दिनों तक व्रत रखने का संकल्प लें। पूरी श्रद्धा भक्ति से मां की पूजा करें। दिन के समय आप फल और दूध ले सकते हैं। शाम के समय मां की आरती उतारें, सभी में प्रसाद बांटें और फिर खुद भी ग्रहण करें।
फिर भोजन ग्रहण करें, हो सके तो इस दौरान अन्न न खाएं, सिर्फ फलाहार ग्रहण करें। अष्टमी या नवमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन कराएं, उन्हें उपहार और दक्षिणा दें। अगर संभव हो तो हवन के साथ नवमी के दिन व्रत का पारण करें।