के कहर को देख मेरी सबसे छोटी पुत्री ने पूछा कि पापा, विज्ञान ने दुनिया में बहुत कुछ तरक्की कर ली है तो भी इस बीमारी का इलाज किसी भी विकसित देश में नहीं बना। दुनिया के लगभग सभी देश इस कोरोना वायरस से प्रभावित है और हजारों लोगों की जान चली गयी हैं। सभी यही सलाह देते हैं कि दिन में 20 बार साबुन से हाथ धोये ओर दूसरे लोगों से नहीं मिले। मेल-जोल की सामाजिक दूरियां बनाये रखें। विज्ञान ही नहीं हमारे मंदिर में बैठे भगवान की मूर्ति, आध्यात्मिक संत, गुरुजन तथा हजारों हर धर्म के उपदेशक आदि सभी यही कह रहे हैं कि डरो मत तथा सावधानी से रहो परमात्मा बहुत ही जल्दी सबकुछ ठीक कर देंगे। तब में मुस्करा कर मेरी पुत्री की बात टाल गया और बोला विज्ञान की सलाह अनुसार ही काम करो बेटा।
मेरी पुत्री फिर भी नहीं मानी और बोली कि नहीं पापा आप बताएं सच क्या है। मैंने कहा बावली यह ही बड़े घरों की रीत है क्योंकि हम तो सदा राबडी खाते रहे और सभी के गीत गाते रहे। मैंने कहा बेटा बड़ा घर परमात्मा का होता है जबकि दुनिया में कई लोग अपने को बडा मानते हैं। परमात्मा के घर में दुनिया को चलाने के क्या खेल चल रहे हैं इसकी भनक तक नहीं लगतीं ओर वह कभी ऐसे खेल खेल जाता है जिसका परिणाम इस धरती के बडे और छोटा सभी घरों को भुगतना पडता है। दुनिया के जो बडे घर है उनकी जुकाम से ही दुनिया छींकने लग जातीं हैं और अपने ईलाज करवाती फिरती है। हम परमात्मा ओर बडे घरों का सदा ही नमन करते हैं क्यो कि हम सृष्टि के परमात्मा से डरते हैं और आखिरी विश्वास भी उसी में रखते हैं। दुनिया में कई लोग जो परमात्मा की बनाई हुई सृष्टि के मानव कल्याण के धर्म को नहीं मान कर अपने ही अनुसार कल्याण करने की विचारधारा को स्थापित करने में लगे होते हैं वे जगत के परमात्मा से नहीं डरते हैं। परमात्मा का समय चक्र सभी सभी को जबाब देता है।
कुदरत अपने काल चक्र को आगे बढाता रहता है और मानव को हर बार संदेश देता है कि हे मानव तू अब संभल — अपनें कुतर्को से कभी तू भगवान को किनारे लगा देंता हैं तो कभी शैतान को भगवान बना उसकी गुलामी में लगकर अपने स्वार्थो को साधता है। धर्म जाति भाषा लिंग अमीर गरीब ऊच नीच के नाम पर तू मानवों के बीच गहरी खाई का निर्माण कर उन्हे संघर्ष के रास्तो पर डाल देता है और जमीन पर खुद को ही ज्ञान का मसीहा और कर्म का बादशाह मान कर सत्य अहिंसा प्रेम और सहयोग का संदेश देता है और मानव सेवा के धर्म के स्थान पर अपने स्वार्थो को सिद्ध करनेके कर्म में लगा रहता है।मानव कल्याण के हितों को तू कुतर्क से काट कर केवल अपने ओर अपने कुनबे के कल्याण के लिए तर्को से कर्म करता है।
माया के मंच पर बैठ कर मायावी व्यक्ति ” मायावी” चोले धारण कर भक्ति, ज्ञान तथा कर्म युद्ध का उपदेश नाच गा कर लोगों को रिझा कर देता है और भावनात्मक खेल की काला बाजारी में सब को कैद कर लेता है । अदृश्य शक्ति के उस अदृश्य देव को दर किनार कर लाभ व स्वार्थ की पूर्ति के कर्म युद्ध करने के संदेश देता है और जब हाथ कुछ नहीं लगता है तो धर्म की हानि होने के आंसू बहाता है।
अहंकारी गर्जना , पग पग पर झूठ कपट मिथ्या का सहारा लेना , अभौतिक संस्कृति के मूल्यो को नकार कर मानव का अपमान करना ओर अपने कुतर्को से सत्य को जमीदोज कर देना, तथा अपने हितों को साधने के लिए किसी भी हद तक चले जाना। स्वार्थियो ओर लोभियों की भीड़ जुटा कर हर जायज़ इंसान के हितों को छीन उसे झूठे अंहकारी में बांट अपने को समाज का मसीहा बनाने ओर कहलाने के खेल खेलना आदि इसी ही तरह की संस्कृति जब स्थापित होने लग जाती है तो वहां मानव के कल्याण के धर्म की समाधि बना दी जातीं हैं और स्वकल्याण के महल बनने लग जाते हैं।
संतजन कहते हैं कि हे मानव अब कुदरत अपने “समय ” चक्र को बढाते हुए जबाब दे रही है कि हे मानव मेरी एक छोटी सी कृति विषाणु जो इस दुनिया को चुनौती दे रहीं हैं कि हे मानव तू मेरे सामने कुछ भी नहीं है क्यो कि मैंने ही तेरा निर्माण किया है और तुझे मिटाने के लिए एक विषाणु हीं काफ़ी हैं। भले ही तू चाँद तारों में घूम रहा है ओर समूची दुनिया को अपने हथियारों से खत्म करने के लिए बलवान हो कर बैठा है या आधयामिक चिंतक बन अदृश्य शक्ति के अदृश्य देव को देख रहा है या लम्बे चोडे संगठन ओर संस्था से मानव संस्कृति गीत गा रहा है।
इसलिए हे मानव तू ” मानव धर्म ” के कल्याण के लिए ही काम कर । तेरा यही धर्म मुश्किलों के वक्त भी मानव सेवा में लगा रहेगा और प्रकृति के हर प्रकोप से मानव की रक्षा करता रहेगा। मानव कल्याण की सेवा से ही तुझे सदा नवाजा जाता रहेगा और तेरी शान में सदा ढोल नगाड़े बजते ही रहेगे। विपत्ति के समय इस दुनिया में ज्ञान कर्म ओर भक्ति के सारे अखाडे बंद हो जायेगे लेकिन मानव कल्याण के लिए काम करने वाले ही अपना काम करते रहेंगे भले ही उनके प्राण निकल जाये या वह खुद पीड़ित हो जाये। हर विवादों का हल कुदरत अपने न्याय सिद्धांत के अनुसार ही अंत में करती है समय का चक्र फल देता है।