Breaking News
Home / breaking / जीत का हकदार आखिर कौन…?

जीत का हकदार आखिर कौन…?

न्यूज नजर : संस्कृति के सागर में मर्यादा और अमर्यादा दोनों ही उलझ पड़ी। दोनों ही अपनी-अपनी विशेषता के तराने ढोल नगाड़े और शहनाइयों की गूँज में सुनाने लगी। दोनों ने ही दमदारी दिखाई और कम नहीं पड़ी। क्योंकि दोनों ही बुद्धि की फसलें थी।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

मर्यादा की फसल पर अमर्यादा के बोलो की भारी और तेज ओलावृष्टि होने लगी और वो जमीन पर गिर कर नष्ट होने लगी। मर्यादा का यह हाल देख कर अमर्यादा हंस पडी ओर बोली अरी बहन सदियों से आज तक मेरा मुकाबला कोई नहीं कर सका और तू सदियों से बेकार ही मुझसे उलझती आ रही है।

मर्यादा जमीनी पर पडी आंसू बहा रही थी और अमर्यादा के बोल उसे लगातार घायल करते जा रहे थे। यह हाल देख कर अमर्यादा कहने लगी अरी बहन मैने अपना प्रचंड रूप दिखा कर राजाओ के राज छुडवा दिये योगियों के योग नष्ट कर दिये। धनवानो को लक्ष्मी विहीन बना डाला। प्रजा से बगावत करवा डाली और सत्यवादियो को मरवा डाला। झूठ फरेब पाखंड ओर अत्याचार यह सब मेरे गुणों की शोभा बढाते है। मै छल कपट के पाशे फेंकती हू और सभी के सामने अपनी जीत का ढंका बजवाती हूं और लोग डर कर मेरी जय जय कार के नारे लगाते हैं।
मैं सबके घरों में घुस कर घरों में ही बंटवारा करवा देतीं हूं। इतना ही नहीं मै जाति समाज वर्ग धर्म अर्थ कर्म सभी में धमाके से प्रवेश कर सभी को बांट कर अपना ही राज कायम करती हूं।

और हां — ऐ मर्यादा तू मुझसे क्यो बैर रखती हैं और सदा ही क्यो मेरा विरोध करती है। देख तू मुझसे मित्रता कर ले हम दोनो मिलकर नया इतिहास रचेंगे और आनें वाली पीढियाँ भी तेरी तरह सदियों से आज तक दुख नहीं पा सकेगी।


जमीन पर घायल हुई मर्यादा रो रो कर कह रही है कि बहन तुझे कभी भी सुद्बुद्धि नहीं आएगी क्योकि तेरा नाम ही अमर्यादा है और तू संस्कृति पर लगा एक भारी कलंक हैं। तू ने भले ही अपने हथकंडो से सदा सब कुछ हासिल कर भी लिया हो पर उसकी उम्र ज्यादा नहीं रही ओर हर बार आखिर में ओंधें मुंह गिरी। मै भले ही तेरे बडे बोलो से जख्मी होती रही घायल हो गयीं और दर दर भटकती रही फिर भी कभी अपनी हार नहीं मानी ओर आखिर तुझे जमीदोज सदा ही करतीं रही। तेरा मेरा यह संघर्ष सदा चलता ही रहेगा।
अमर्यादा हंस कर बोली तो तू ही बता कि आखिर कौन जीत का हकदार है। तब मर्यादा बोली असली हकदार मैं ही हूं और सदियों से मैं ही तेरा अंत में बार बार करतीं आई हूं और करती रहूँगी।

संत जन कहते हैं कि हे मानव मर्यादा ही समाज और संस्कृति की विरासत होती है वो ही खरे सोने के आभूषणों की तरह होती है, जिसमें तप तप कर सदा निखार ही आता है। जबकि अमर्यादा खोटी धातु के आभूषण होते हैं जिनकी चमक कुछ दिनों बाद ही फीकी पड जाती है और वो मूल्य विहिन हो जाती है ।
इसलिए हे मानव तू व्यवहार में सदा मर्यादा बनाये रख जिससे घर परिवार समाज जाति वर्ग धर्म ओर संस्कृति सभी दिनो दिन प्रगति करते रहे और खुशियों के तराने शादीयानों पर गूंजते रहे।

Check Also

21 नवम्बर गुरुवार को आपके भाग्य में क्या होगा बदलाव, पढ़ें आज का राशिफल

    मार्गशीर्ष मास, कृष्ण पक्ष, षष्ठी तिथि, वार गुरुवार, सम्वत 2081, हेमंत ऋतु, रवि …