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प्रकृति की विनाशकारी लीला का भयंकर रूप

न्यूज नजर : विश्व के वर्तमान प्राकृतिक परिदृश्य को देख ऐसा लगता है कि प्रकृति की कोई अदृश्य शक्ति पृथ्वी पर प्रकट हो चुकी हैं और लगातार अपने प्रकोप से समूचे विश्व को भारी नुकसान पहुंचाने के लिए अपने अस्त्र शस्त्र लेकर खड़ी हो गई है।

 

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

विश्व में कहीं सूखे की भारी स्थिति बनी हुई है तो कहीं पर भारी गर्मी से झुलसा रही है। कहीं पर भारी ज्वाला मुखी का लावा फैल कर सब कुछ मिटाने में लगा हुआ है तो कहीं पर भूकंप बार बार जमीन को हिला सबको भयभीत कर रहा है और इतना ही नहीं भारी मात्रा में आसमान से बरसाती आफत गिर कर सब को बहा कर ले जाने की ओर बढ रही है तो कहीं पर बादल फट कर सब कुछ जल मग्न कर सबको बहा कर ले जा रहा है।
अत्यधिक जल प्रलय बाढ़ कर नगर भ्रमण करता हुआ ज़बरन मेहमान बन घरों में घुस कर सभी वस्तुओं को अपने कब्जे में कर मकान मालिक को बाहर निकाल कर खुद मालिक बन बैठा है। पहाड़ियाँ टूट टूट कर मलबा फैला कर मार्ग को बंद कर रही है।

यह सारी स्थितियां अभी दुनिया मे सर्वत्र देखी जा रही है और विश्व का हर भू-भाग अलग-अलग तरीके से परेशान हो रहा है। अपना प्रचंड ओर विनाशकारी रूप दिखाती हुई प्रकृति इस समय विकराल बन कर दुनिया की हर शक्ति ओर विज्ञान को चुनौती दे रही है। प्रकृति की शक्ति के सामने दुनिया की सभी मानवीय शक्तियां बोनी सी नजर आ रही है और दुनिया का हर विज्ञान मूक दृष्टा बना हुआ है।

प्रकृति मानव को मानो यह संदेश दे रही है कि हे मानव तू मेरी रचना को अपनी शक्ति का शिकार मत बना व मेरे द्वारा प्रदत्त हर भौतिक संपत्तियो को बर्बाद मत कर । अपनी शक्ति प्रदर्शन से लाखों टन गोला बारूद को दाग़ कर तू दुनिया का महाबली बन कर बैठा है और मानव सभ्यता और संस्कृति को मिटाने मे लगा हुआ है।

 

हे शक्तिमान तेरा कुछ भी अस्तित्व मेरे सामने नहीं है।इसलिए तू मेरे अस्तित्व को बनाए रख वरना मेरा एक ही प्रकोप तेरे विनाश के लिए बहुत है क्योकि ” मै प्रकृति हूं और मेरा धर्म न्याय और विज्ञान ” ही इस दुनिया का अंतिम सत्य है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव प्रकृति के ऋतु काल हर तरह के प्रभाव पृथ्वी पर पडते हैं लेकिन इस बार और अभी सर्वत्र विश्व में असाधारण रूप से भारी प्रभाव कई वर्षों बाद पड रहे हैं जो सभ्यता ओर संस्कृति की शक्तियो को संदेश दे रहे हैं कि हे मानव तू मेरी रचना के साथ खिलवाड़ मत कर तथा अति की तरफ़ मत बढ़ क्यो कि वो मेरा अपना क्षेत्राधिकार है।

इसलिए हे मानव तू प्रकृति की संस्कृति को बनाए रख क्योंकि तेरी रचना भी प्रकृति ने ही की है। इस कारण तू प्रकृति से बडा नहीं हो सकता है।

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