सरायकेला। मंदिर में जहां प्रसाद के रूप में चढाया जाता घोड़ा। यह सुनकर सभी को आश्चर्य होता है। लेकिन सच्चाई यह है कि सरायकेला जिले के गम्हरिया प्रखण्ड में घोड़ा बाबा मंदिर है। जहां मन्नत पूरी होने पर लोग घोड़ा चढाते हैं। यह घोड़ा असली घोड़ा नहीं बल्कि मिट्टी का होता है। जमशेदपुर से करीब 10 किमी दूर सरायकेला मार्ग पर गम्हरिया के पास सड़क के किनारे हाथी घोड़ा बाबा का मंदिर है। मकर संक्राति के दूसरे दिन इस मंदिर मे काफी भीड होती है। साल में एक बार ही इस मंदिर मे भीड़ होती है। घोडा बाबा मंदिर में दूर दूर से लोग इनकी भक्ति में लीन होने के लिए और अपनी मुरादे पूरी करने के लिए आते हैं। यहां किसी भगवान या देवता की पूजा नहीं होती है, बल्कि घोड़ा बाबा की आराधना की जाती है।
प्रसाद के रूप घोड़ा-हाथी चढ़ाते
जब श्रद्धालुओ की मुरादें पूरी हो जाती हैं तो लोग प्रसाद के रुप मिठ्टी के घोड़े हाथी चढाते हैं। खास बात यह है कि इस मंदिर में जो प्रसाद केला, नारियल आपको मिलता है उसे आप घर नहीं ले जा सकते हैं। आप को जितना प्रसाद खाना है यहां खाए और अगर नहीं खा सकते हैं तो उसे किनारे रख दें। ताकि उस पर किसी का पैर नहीं लगे।
महिलाओं का प्रवेश था वर्जित
इस मंदिर मे पूर्व मे महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। लेकिन धीरे घीरे यह प्रथा लुप्त हो गई। हालांकि इस मंदिर का संचालन कर रही कुभकांर जाति के घर की महिलांए आज भी मंदिर नही आती हैं। हालांकि 18 साल से कम उम्र की लड़किय़ां इस जगह आ सकती है।
300 साल पहले हुआ इस मंदिर का निर्माण
इस मन्दिर में घोड़े की पूजा की प्रथा 300 साल पुरानी है। कहानी यह है कि भागवान कृष्ण और बलराम ने घोड़े पर सवार होकर खेती के लिए इस ग्राम का दौरा किया था और फिर बलराम ने अपने हल से गम्हरिया की धरती पर खेती की नीव रखी थी। भागवान कृष्ण बलराम के जाने के बाद उनके घोड़े गम्हरिया में ही बिराज गये। तभी से ही गम्हरिया में घोड़े बाबा की पूजा अर्चना हो रही है।