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तू कांई जाणे बावला यां देवां की रीत…

भंवरलाल, ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक, जोगणिया धाम पुष्कर

धूर्त और लोभी व्यक्ति अपने फटे हुए भाग्य के कपडो को देख हैरान हो जाता है। तब वो एक बदनीयत चाल चल कर, सज्जनता व सरलता का चोला पहन लेता है और अपने भाग्य के फटे कपड़े पर पैंबंद लगवाने के लिए दर दर भटक रहता है। इंसान से जब उसकी पार नहीं पडती है तो वो ‘देवो के देवरे’ पहुंच जाता है।

उनके शतरंज की गोटियों के फल में देव नहीं वरन् मानव थे। देव तो केवल चौसरी का नजरी नक्शा था। उन्हें विश्वास था कि मानव ही फटे भाग्य के कपडो पर पैबध लगा सकते हैं। लोभ सदा उम्र पर भारी पडता है और धूर्तता के पास “विश्वास ” गिरवी पड़ा रहता है। इन गोटियों से वो चौसर पर भावुक बन अतिक्रमण कर लेता है और अपने मक़सद की मंजिल बना लेता है।
देवों की रीत केवल पढी या सुनी गयी है, पर देवों की रीत क्या है देव क्या है यह स्वयं एक बिना हल होने वाला सवाल है ? लोभ ओर धूर्तता तो केवल मानव की रीत को ही जानतीं हैं। उसका मकसद भी केवल मानव को मोह लेना होता है और अपने मकसद में पूरा कामयाब हो जाता है।
इस लोभ और धूर्तता के खेल को देख “देव ” भी मुस्करा जाते हैं और मानव को सारी छूट देकर सर्वत्र विजय पताका फहराने के लिये छोड़ देते हैं।

लोभ और धूर्तता सर्वत्र हवा के साथ उडकर अपना परचम लहराती है। फिर दानव रूपी आंधी आती है और लोभ ओर धूर्तता की पताका को उड़ा कर ले जाती है और आंधी निकल जाने के बाद वो लोभ ओर धूर्तता अकेली ही रह जाती है और उसका मानव अपनी जान बचाने के लिए भाग जाता है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव यह सारी कथा केवल प्रकृति और जीव व जगत पर आधारित है। मानव भाग्य को बदलने के लिए नकारात्मक मूल्यो को ग्रहण कर लेता है और कर्म के मार्ग से विमुख हो जाता है। हर हथकंडे को अपनाता हुआ वो मानवीय मूल्यों के विपरित चला जाता है। शकुनि के पाशे में उलझ कर वो दुर्योधन बन जातां है और कर्म रूपी श्री कृष्ण का विरोधी बन जाता है और उससे भाग्य छीनने का असफल प्रयास करता है।
कर्म के हाथ में सुदर्शन चक्र रूपी भाग्य फिर नकारात्मक मूल्यो को खत्म कर उस लोभ ओर धूर्तता को मिटा देता हैं और अपना अस्तित्व बता कर संदेश देता है कि हे मानव मै भाग्य हू। तू मेरे पीछे मत दोड ओर कर्म के उस मार्ग की ओर बढ़ जहां लोभ ओर धूर्तता ना हो। भले ही मैं तुझे नही अपनाऊ पर कर्म के अखाडे मे तेरा सम्मान हो जयेगा क्यो कि” मै देव हू ओर मेरी रीत नहीं जानता मै कभी भी कहीं भी कुछ भी कर सकता है इसलिए लोग मुझे भाग्य कहते हैं।

इसलिए हे मानव तू अपने कर्म का चयन गंदी सोच से मत कर। तेरा भाग्य खुद ही तुझे पुकारेगा।

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