अजमेर। जिले में मुख्यमंत्री के पगफेरे के बावजूद पुलिस और प्रशासन के अफसरों ने अपनी फितरत नहीं छोड़ी है। पटाखों की दुकानों को लाइसेंस देने में हमेशा की तरह इस बार भी जमकर भ्र्ष्टाचार हो गया। इसी के साथ आम जनता की जान भी दांव पर लगा दी गई है।
सिटी मजिस्ट्रेट कार्यालय ने सोमवार को शहरभर में पटाखों की अस्थाई दुकानों के लिए लाइसेंस जारी कर दिए। पिछले कई दिन से लाइसेंस का इंतजार कर रहे दुकानदारों ने तुरन्त दुकानें सजा ली हैं। दुकानें लगते ही प्रशासन का भ्र्ष्टाचार सामने आ गया।
नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए लाइसेंस जारी किए गए हैं। केसरगंज गोल चक्कर पर पटाखों की दो दुकानों के बीच 20 मीटर की दूरी तो छोड़िए, बिल्कुल पास-पास की दुकानों में लाइसेंस दे दिए गए हैं। 10 मीटर की दूरी में तीन-तीन दुकानों को लाइसेंस जारी कर दिए। गांधी भवन के पास तो बिना पक्की दुकान के ही लाइसेंस देकर प्रशासन ने जिंदा मक्खी निगलने से गुरेज नहीं किया।
मदार गेट पर भी 20 मीटर के दायरे में 3-3 दुकानें खुल चुकी हैं। साथ ही जलती भट्टी के पास पटाखे बिक रहे हैं। ज्यादातर दुकानदार बाहर टेबल पर पटाखे रखकर खुले में बेच रहे हैं।
आपको बता दें कि यह सब उन्हीं सिटी मजिस्ट्रेट की नाक के नीचे हुआ है जिन्होंने चार दिन पहले उन चार दुकानदारों को जेल भेजकर वाह वाही लूटी थी जिन्होंने लाइसेंस मिलने से पहले ही पटाखे की दुकानें लगा ली थीं।
यह है नियम
प्रशासन ने पटाखे बेचने के लिए अस्थाई लाइसेंस जारी करने के लिए कड़े नियम बना रखे हैं। इनमें 20 मीटर के दायरे में दो दुकानों को लाइसेंस नहीं दिया जा सकता। साथ ही दुकान कम से कम दस गुना दस आकार की पक्की बनी होनी चाहिए, टेंट आदि में लाइसेंस नहीं दिया जा सकता है। दुकान में आग बुझाने का यंत्र होना चाहिए, पक्की बिजली फिटिंग होनी चाहिए। दुकान के 10 मीटर के दायरे में भट्टी नहीं होनी चाहिए। सिटी मजिस्ट्रेट कार्यालय को आवेदन के साथ दुकान का ब्ल्यू प्रिंट व शपथ पत्र लगाना होता है। आवेदन मिलने के बाद प्रशासन स्थानीय थाना पुलिस से मौका रिपोर्ट तैयार कराता है। पुलिस की रिपोर्ट के बाद ही लाइसेंस जारी किए जाते हैं।
यह होता है
बरसों से हर साल पटाखे की दुकान के अस्थाई लाइसेंस जारी करने में जमकर रिश्वत का खेल चलता है। मौका रिपोर्ट के नाम पर स्थानीय थाना पुलिस एक दुकान से 10 हजार रुपए तक रिश्वत वसूलती है। जो रिश्वत नहीं देता, उसके आवेदन में कोई ना कोई कमी निकाल दी जाती है।
इसी तरह सिटी मजिस्ट्रेट कार्यालय में जमकर रिश्वतखोरी होती है। प्रति आवेदन 5 हजार रुपए रिश्वत फिक्स है। रिश्वत नहीं देने पर लाइसेंस आवेदन पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है। ऐसे में लाखों रुपए का कारोबार करने वाले दुकानदार महज 15-20 हजार रुपए भेंट पूजा में खर्च करने में बिल्कुल पीछे नहीं हटते हैं। इसके अलावा दीपावली पर पटाखों से भरी थैली थाने पर पहुंचानी पड़ती है। इतना करने के बाद दुकानदार को आम जनता की जान से खिलवाड़ करने का लाइसेंस मिल जाता है।
कौन होगा जिम्मेदार
पटाखों की दुकानें पास-पास लगने और जलती भट्टी पास होने के कारण हर पल आग लगने का अंदेशा रहता है। इसके बावजूद प्रशासन के कारिंदे और पुलिस अपनी दिवाली मनाने के चक्कर में लोगों की जान जोखिम में डाल देती है। अगर प्रशासन और पुलिस के अफसर वाकई ईमानदार हैं तो इन दुकानों की जांचकर दोषी व भ्र्ष्टाचारी अफसर-कर्मचारियों को दंडित कर सकते हैं।