अहमदाबाद। गुजरात हाईकोर्ट ने 2002 में हुए गोधरा ट्रेन आगजनी मामले में फांसी की सजा पाए 11 दोषियों की सजा सोमवार को उम्रकैद में बदल दी है। जबकि 20 लोगों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है। गोधरा कांड में 59 कार सेवक मारे गए थे। मृत्युदंड की सजा पाने वाले 11 दोषियों ने फैसले को चुनौती देते हुए अपील दायर की थी।
एसआईटी की एक विशेष अदालत ने एक मार्च 2011 को इस मामले में 31 लोगों को दोषी करार दिया था और 63 को बरी कर दिया था। इनमें से 11 लोगों को फांसी की सजा सुनाई थी और 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
यह है मामला
27 फरवरी की सुबह जैसे ही साबरमती एक्सप्रेस गोधरा रेलवे स्टेशन के पास पहुंची, उसके एक कोच से आग की लपटें उठने लगीं और धुएं का गुबार निकलने लगा। बाद में खुलासा हुआ कि एस-6 डिब्बे को आग लगाई गई थी, जिसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे। ट्रेन में आग के बाद 59 लोगों की मौत हो गई थी, जो राम मंदिर आंदोलन के तहत अयोध्या में एक कार्यक्रम से लौट रहे थे। मरने वालों में ज्यादातर ‘कारसेवक’ थे।
एसआईटी की विशेष अदालत ने 1 मार्च 2011 को इस मामले में 31 लोगों को दोषी करार दिया था तथा 63 आरोपियों को बरी कर दिया था। दोषी पाए गए आरोपियों में से 11 को फांसी की सजा सुनाई गई थी, जबकि 20 को उम्रकैद की सजा मिली थी।
कोर्ट के इस फैसले को गुजरात हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। दोषी पाए गए आरोपियों की तरफ से भी फैसले के खिलाफ अपील की गई साथ ही गुजरात सरकार की तरफ से 63 आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले को भी चुनौती दी थी।
स्पेशल कोर्ट ने घटना के पीछे साजिश की बात मानते हुए आरोपियों को हत्या, हत्या के प्रयास और आपराधिक साजिश की धाराओं के तहत दोषी पाया था। इस हत्याकांड की जांच के लिए गुजरात सरकार की ओर से गठित नानावती आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में लगी आग कोई हादसा नहीं थी, बल्कि इसे आग के हवाले किया गया था।
इन्हें किया था बरी
मुख्य आरोपी बनाए गए मौलाना उमरजी, गोधरा म्युनिसिपैलिटी के तत्कालीन प्रेसिडेंट मोहम्मद हुसैन कलोता, मोहम्मद अंसारी और उत्तर प्रदेश के गंगापुर के रहने वाले नानूमियां चौधरी को कोर्ट ने बरी कर दिया था।