कार्तिक माह की कृष्ण चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी के दिन किया जाने वाला करवा चौथ का व्रत सुहागिनों का सबसे बड़ा व्रत है। विवाहित जीवन में इस व्रत की महिमा न्यारी है। पत्नियां पति की दीर्घायु के लिए पूरे दिन निर्जल निराहार रहकर चन्द्रदर्शन और पति के दर्शन कर व्रत खोलती हैं। उन्हें बेसब्री से चन्द्रदर्शन का इंतजार रहता है। इस बार 8 अक्टूबर रविवार को यह पर्व है।
करवा चौथ पूजा मुहूर्त- 17:56 से 19:10 बजे
अवधि- 1 घण्टा 14 मिनट
करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय- 20:14 बजे
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ- 8 अक्टूबर 16:58 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त- 9 अक्टूबर 14:16 बजे
यूं रखें व्रत
प्रातः स्नानादि करने के पश्चात मन में संकल्प लेकर व्रत आरंभ करें। पूरे दिन निर्जल रहें। आठ पूरियों की अठावरी व हलुवा बनाएं। पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें। जल से भरा हुआ लोटा रखें।
करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं। गौरी-गणेश की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें। करवा पर तेरह बिंदी रखें और गेहूं या चावल के तेरह दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासू जी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्ध्य दें। इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें। सास अपनी बहू को सरगी भेजती है. सरगी में मिठाई, फल, सेवइयां आदि होती है। इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले करती हैं।
अगर आप उजीर्णा कर रही हैं तो एक थाल में तेरह जगह चार-चार पूड़ियां रखकर उनके ऊपर सूजी का हलवा रखें। इसके ऊपर साड़ी-ब्लाउज और रुपये रखे जाते हैं। हाथ में रोली, चावल लेकर थाल में चारों ओर हाथ घुमाने के बाद यह बायना सास को दिया जाता है। तेरह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराने के बाद उनके माथे पर बिंदी लगाकर और सुहाग की वस्तुएं देकर विदा कर दिया जाता है।
पूजन में यह सामग्री अवश्य रखें
चंदन, शहद, अगरबत्ती, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मिठाई, गंगाजल, कुंकू, अक्षत (चावल), सिंदूर, मेहंदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूं, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, चलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलवा व दक्षिणा (दान) के लिए पैसे, इत्यादि।