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जस्टिस कर्णन ने लौटाए सुप्रीम कोर्ट के वारंट, लगाया दलित जज की प्रताड़ना का आरोप

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोलकाता हाईकोर्ट के जज जस्टिस सीएस कर्णन को भेजे गए जमानती वारंट को उन्होंने लौटा दिया है। उन्होंने आज शुक्रवार को चीफ जस्टिस समेत सुप्रीम कोर्ट के सात वरिष्ठतम जजों को फिर पत्र लिखकर इसे लौटाने का कारण बताया है।

उन्होंने कहा है कि न्यायालयों की गरिमा बचाए रखने के लिए और ज्यादा प्रताड़ित न किया जाए। पत्र में लिखा गया है कि आपके इस कदम से एक दलित जज की प्रताड़ना हो रही है।

पत्र में कहा गया है कि कोलकाता हाईकोर्ट सर्किल से पुलिस के सबसे बड़े अधिकारी हमारे पास आपके दस मार्च को जारी जमानती वारंट को लेकर हमारे निवास पर आए थे जिसमें 31 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में मुझे उपस्थित होने का आदेश दिया गया है। मैंने उस वारंट को अस्वीकार कर दिया है।

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पत्र में लिखा गया है कि पश्चिम बंगाल का न्यायिक क्षेत्र उनके नियंत्रण में आता है। लिहाजा जमानती वारंट अनुचित है। ऐसी परिस्थिति में आपको कानून की प्रक्रिया का पालन करना चाहिए और किसी केस को निपटाने में निरपेक्ष तरीके से पेश आना चाहिए। ये साफ है कि सम्मानित जजों ने कानून की जानकारी न होने की वजह से जान-बूझकर गलती की है। इस कदम से अंतत: आम जनता को ही खतरा है।

मैं आप सब से अवमानना की प्रक्रिया को बंद करने और हमारे सामान्य न्यायिक कार्यों को पुनर्स्थापित करने का आग्रह करता हूं ताकि देशभर में न्याय और कानून का राज स्थापित हो सके।

आपको बता दें कि 16 मार्च को जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के सात वरिष्ठतम जजों से मानसिक परेशानी और सामान्य जीवन को नुकसान पहुंचाने के एवज में चौदह करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की थी। जस्टिस कर्णन ने पत्र के मिलने के सात दिनों के भीतर ये मुआवजा देने को कहा है।

जस्टिस कर्णन ने इन जजों को संबोधित पत्र में कहा है कि अगर आपने ये मुआवजा नहीं दिया तो आपको अपने न्यायिक कार्यों से हटा दिया जाएगा। जस्टिस कर्णन ने सात जजों की संविधान बेंच के गठन को असंवैधानिक बताते हुए उसे रद्द करने की मांग की है।

आपको बता दें कि 10 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करते हुए सु्प्रीम कोर्ट के सात वरिष्ठतम जजों की संविधान बेंच ने जमानती वारंट जारी किया है। हालांकि जस्टिस कर्णन ने इस वारंट पर खुद ही रोक लगा दी है।

उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना की कार्यवाही चलाने का फैसला किया था। पिछले 13 फरवरी को भी अवमानना कार्यवाही का नोटिस मिलने के बावजूद जस्टिस कर्णन सुप्रीम कोर्ट में पेश नहीं हुए थे।

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पिछली सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था कि जस्टिस कर्णन के लेटर को देखते हुए उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमें ये कारण नहीं पता कि जस्टिस कर्णन कोर्ट में पेश क्यों नहीं हुए।

इसलिए हम इस मामले पर जस्टिस कर्णन से कुछ सवालों के जवाब चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन के न्यायिक और प्रशासनिक अधिकार वापस ले लिया था। कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को निर्देश दिया था कि वो सभी न्यायिक फाइलें हाईकोर्ट को तत्काल प्रभाव से सौंप दें।

पूर्व चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाले कालेजियम ने मार्च में उनका स्थानांतरण कर दिया था। जस्टिस कर्णन ने कहा है कि दलित होने के कारण उनके साथ भेदभाव किया जाता है।

उन्होंने तबादले के आदेश को खुद ही आदेश पारित कर स्टे कर दिया था तथा चीफ जस्टिस को नोटिस देकर जवाब मांगा था। लेकिन बाद में वह मान गए। वरिष्ठ अधिवक्ता रामजेठमलानी ने जस्टिस कर्णन को एक खुला खत लिखते हुए अपने किए कामों के लिए माफी मांगने की सलाह दी थी।

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