आरटीआई एक्टिविस्ट ने जताया अंदेशा
मुंबई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कालाधन बर्बाद करने के लिए 1000 व 500 के नोटों पर बैन लगाया या फिर किसी बड़े घोटाले पर पर्दा डालने के लिए? यह सवाल आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन रॉय के एक अहम खुलासे के बाद गरमा गया है।
आरटीआई कार्यकर्ता रॉय ने 2011 में नोटों की छपाई व वितरण की जानकारी प्रिंटिंग प्रेस व रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से मांगी थी। रिजर्व बैंक द्वारा इस बाबत में दी गई जानकारी में बेहद अंतर पाया गया। रॉय को दी गई जानकारी के अनुसार छपे हुए नोट व वितरण में नोट की संख्या में बहुत अंतर था। इसकी जानकारी जब मनोरंजन रॉय ने रिजर्व बैंक से मांगी तो रिजर्व बैंक ने जानकारी देने में असमर्थता जता दी| जब रॉय ने सभी नोटों को रद्द करने की मांग की तो रिजर्व बैंक की ओर से कहा गया कि इससे आर्थिक व्यवस्था चरमरा जाएगी।
इसके बाद आरटीआई कार्यकर्ता ने इस मामले की जांच करवाए जाने के लिए 2012 में ही राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री सहित अन्य संबंधित उच्च पदस्थ लोगों को इसकी जानकारी दी और मामले पर कार्रवाई किए जाने की मांग की। कार्रवाई न होने पर मनोरंजन रॉय ने इस मामले को लेकर बंबई उच्च न्यायालय में जनहित याचिका क्रमांक 85 – 2015 दायर किया था और उसमें प्रधानमंत्री , गृहमंत्री , व वित्तमंत्री को वादी बनाया था। लेकिन अदालत ने याचिका यह कहते हुए निरस्त कर दी कि इस मामले में प्रधानमंत्री का सीधे तौर पर हाथ नहीं हो सकता है।
इसके बाद रॉय ने हजार व पांच सौ रुपए की छपाई व वितरण में हुए घोटाले की जांच के लिए बंबई उच्च न्यायालय में रिव्यू पीटिशन नंबर एल 6 -2016 दाखिल किया है। इस मामले की सुनवाई लंबित है। रॉय ने कहा कि इसी दरम्यान सरकार ने हजार व पांच सौ रुपए को चलन से बंद कर दिया है। इससे पूरा घोटाला दफन हो जाने की आशंका है और इस मामले में करोड़ों रुपए का घोटाला करने वाले अधिकारी जांच के दायरे से बच जाएंगे।