छीपा सप्तमी को फिर दोहराया जाएगा इतिहास
आशीष नामा/नामदेव न्यूज डॉट कॉम
अजमेर। राजस्थान के टोंक जिला मुख्यालय का छीपा समाज एक बार फिर इतिहास दोहराने जा रहा है। यहां 24 अगस्त को छीपा सप्तमी महोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा। इसके लिए बड़े पैमाने पर तैयारियां की गई हैं। इस आयोजन की समाजबंधु पूरे साल प्रतीक्षा करते हैं। इस बार लगभग दो हजार समाजबंधु सामूहिक पिकनिक मनाएंगे… साथ बैठकर भोजन करेंगे। नृत्य-गीतों की धूम के बीच प्रतिभाओं पर पुरस्कारों की बारिश भी होगी। खास बात यह होगी कि इस बार खास बात यह होगी कि टोंक में रहने वाले 16 दर्जी परिवारों को भी नवयुवक मंडल के प्रयासों से इस आयोजन में भागीदार बनाया जा रहा है। दर्जी-छीपा समाजबंधु एक जाजम पर होंगे। सामाजिक एकता की दिशा में यह आयोजन मील का पत्थर है। छीपा समाज के इस सबसे बड़े आयोजन में आसपास के जिलों के समाजबंधु भी भाग लेंगे।
ये होंगे कार्यक्रम
श्री नामदेव छीपा समाज समिति की ओर से कुंडियों के बालाजी चतुर्भुज तालाब के पास स्थित संत नामदेव सामुदायिक भवन में छीपा सप्तमी महोत्सव मनाया जाएगा। इस मौके पर प्रतिभा सम्मान समारोह, सांस्कृतिक कार्यक्रम, सामूहिक गोठ सहित कई कार्य्रकम होंगे। आयोजन दोपहर 1 बजे शुरू होगा और देर शाम तक चलेगा।
समाज अध्यक्ष डॉ.जे.सी.गहलोत व महामंत्री सत्यनारायण गोठरवाल ने बताया कि दोपहर 1 बजे मुख्य अतिथि दीप प्रज्ज्वलित कर महोत्सव का शुभारंभ करेंगे। इसके बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रतिभावान छात्र-छात्राओं का सम्मान, बच्चों की गायन व नृत्य प्रस्तुति, नवनियुक्ति व सेवानिवृत्त कर्मचारियों का अभिनंदन, अतिथियों का उद्बोधन और फिर सामूहिक गोठ होगी।
नवयुवक मंडल अध्यक्ष महेश नईवाल व मंत्री आशीष नामा ने बताया कि जिलेभर के छीपा समाजबंधुओं सहित आसपास के जिलों से भी लोग शिरकत करेंगे।
परम्परा का निर्वाह
हर साल रक्षाबंधन के अगले दिन समाज के दाणेराय जी के मंदिर में समाजबंधुओं की बैठक डॉ.जे.सी.गहलोत की अध्यक्षता में होती है। इसमें एक सप्ताह बाद यानी अष्टमी पर समाज की सामूहिक गोठ की तैयारियों पर चर्चा होती है। हर साल इस आयोजन में लगभग डेढ़ हजार समाजबंधु शामिल होते हैं। इस बार 1800 से लेकर 2000 तक समाजबंधुओं के जुटने की संभावना है।
यूं हुई शुरुआत
(उमेश नामा/उमाकांत नामा)
छीपा समाज का प्रमुख कार्य कपड़ों की छपाई-रंगाई रहा है। उस दौर में बड़े पैमाने पर घर-घर यह काम होता था। समाज के महिला-पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर सालभर जोर-शोर से इस कार्य में जुटे रहते थे। बरसाती सीजन में एक दिन वे अपने काम से छुट्टी करके पूरा दिन आमोद-प्रमोद में बिताते थे। इसके लिए जन्माष्टमी से ठीक एक दिन पहले वे अपने-अपने घरों से बना-बनाया भोजन तैयार करके लाते और साथ बैठकर खाते थे। छीपा समाज शुरू से ही धर्म परायण रहा है। जन्माष्टमी का व्रत करने से पहले समाजबंधु एक जगह मिल-बैठकर सामूहिक भोजन करते थे। धीरे-धीरे एक ही जगह भोजन बनाया जाने लगा। रसोइये सभी के लिए भोजन बनाते थे जबकि समाजबंधु आपसी मेल-जोल बढ़ाते, नाचते, गीत-भजन गाते दिन व्यतीत करते थे। अपने रिश्तेदारों, परिचितों आदि को भी इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित करते। इस उत्सव में धीरे-धीरे वृहद रूप ले लिया। पहले इस उत्सव के लिए जगह भी तय नहीं थी। कभी महादेववाली मंदिर तो कभी अन्नपूर्णा गणेश मंदिर में समाजबंधु यह उत्सव मनाते। कभी रसिया की छतरी पिकनिक स्थल पर एकत्र होते थे।
सामाजिक एकता के गवाह बने कुंडियों के बालाजी
पहले समाजबंधु खुले वातावरण में हर साल अलग-अलग जगह सामूहिक गोठ करते थे। बाद में उन्हें स्थाई स्थान की कमी खलने लगी। इसी बीच कुंडियों के बालाजी स्थान पर अतिक्रमण रोकने के लिए समाजबंधुओं के सहयोग से चारदीवारी का निर्माण कराया गया। तब से छीपा समाज की सामूहिक गोठ इसी स्थान पर होने लगी। वर्ष 2011-12 में हितकारिणी सभा की बैठक में यहां छात्रावास व भवन बनाने पर र्चा हुई। एक अगस्त 2012 को छीपा सप्तमी की गोठ में तेज बारिश के कारण व्यवधान पड़ा। तब तय किया गया कि अगले साल यह गोठ समाज के भवन में ही होगी। इसके लिए भवन निर्माण समिति का गठन किया गया। समाज के युवा भी इस पुनीत कार्य में आगे आए। सभी के प्रयासों से भवन बना और इसी भवन में उत्साहपूर्वक छीपा समाजबंधु हर साल गोठ मनाने लगे।
छीपा सप्तमी : धार्मिक नहीं सामाजिक महत्व
पूरे देश में टोंक का छीपा सप्तमी का उत्सव मशहूर है। सवाई माधोपुर, करौली, जयपुर सांगानेर, कोटा, बूंदी आदि के नामदेव बंधु भी इस आयोजन में शामिल होते हैं। छीपा सप्तमी का कोई धार्मिक महत्व या संंबंध नहीं है। यह विशुद्ध रूप से सामाजिक आयोजन है जिसे हमारे पूर्वजों ने शुरू किया था।