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अक्षय तृतीया पर बच्चों ने रचाई अनोखी शादी, सदियों से चली आ रही परंपरा को रखा कायम

नरसिंहपुर। अक्षय तृतीया पर्व हिंदू धर्म के लिए अति महत्वपूर्ण पर्व है। मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में प्राचीन काल से अक्षय तृतीया के दिन मिट्टी के पुतरा-पुतरी (पुतला-पुतली) का विवाह कराने की परंपरा है। उसी के चलते इस दिन जिले की गोटेगांव तहसील में छोटे छोटे बच्चो से लेकर बड़े बुजुर्गो ने क्षेत्र में सदियों से चली आ रही पुतरा पुतरी की शादी कराई, जिसमें बरात ले जाने से लेकर पांव पूजन एवं विदाई भी कराई और ढोलक बजाकर गाने गाए।
सदियों से चली आ रही पुरानी परंपराओं के साथ अक्षय तृतीया पर गोटेगांव में भी लोगों ने गुड्डा गुड़िया की मंडप बनाकर पूरे विधि विधान से शादी कराईl मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में रचे-बसे पुतरा-पुतरी के विवाह का विशेष महत्व है। लेकिन बदलते समय और दौर के हिसाब से अब ये आधुनिकता की परिभाषा में गुड्डे-गुड़ियों की शादी के नाम से मशहूर हो गया है।
अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों या वाहन आदि की खरीदारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। वहीं इसी दिन छोटे बच्चे भी गुड्डे-गुड़ियों का विवाह कर खुशियां बटोरते हैं. जिले के बुजुर्ग अपनी पुरानी यादो को याद करते हुए बताते है कि उनके समय में भी पुतरा-पुतरी के विवाह का विशेष महत्व रहा करता था। इस दिन बकायदा लकड़ी के पाटे को चारों तरफ से सजाकर पुतरा-पुतरी का विवाह पुरे विधि-विधान से संपन्न किया जाता था, लेकिन बदलते समय के परिवेश में इसमें विशेषकर शहरी क्षेत्रों में लगातार परिवर्तन देखने को मिल रहा है l ग्रामीण अंचल के निवासी बताते है कि हमारे जमाने में बांस और मिट्टी से निर्मित पुतरा-पुतरी का चलन था। हालांकि कहीं कहीं अब भी यह देखने को मिल जाता है, लेकिन आधुनिकता इस पर भी हावी हो गई है. बच्चे अब आधुनिक परिधान में सजे गुड्डे-गुड़ियों की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं l