मृत्युभोज सामाजिक बुराई होने के साथ ही पिछड़ेपन की निशानी भी है। कोई भी समाज तब तक विकसित नहीं कहला सकता जब तक वह पुरातन कुरीतियां का बोझ ढो रहा है। अगर नामदेव समाज को भी पिछड़ेपन का दाग मिटाना है तो सबसे पहले मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को मिटाना होगा। इसका सबसे अहम रास्ता तो यही है कि लोग मृत्युभोज का बहिष्कार करें।
‘नामदेव न्यूज डॉट कॉम’ की तरफ से समाज के लोगों से की गई चर्चा का यही सार निकला। समाजबंधुओं का कहना है कि किसी के घर में मौत हो जाती है तो उस परिवार के लोग मृत्युभोज नहीं करने जैसा बड़ा निर्णय आसानी से नहीं ले पाते। यही सोचते हैं कि समाज वाले क्या कहेंगे। लोग तरह-तरह की बातें बनाएंगे और पीठ पीछे ताना भी देंगे कि खर्च से डर गए। मगर ऐसा सोचना और करना समाजहित में कतई नहीं है। अगर कोई मृत्युभोज आयोजित नहीं करने का ऐलान करता है तो उसकी पीठ थपथपानी चाहिए ताकि उसे लगे कि वह सही है। कई लोग ऐसे भी हैं जो सार्वजनिक रूप से इस कुरीति के खात्मे के लिए हां में हां तो मिलाते हैं मगर जब मौका पड़ता है तो यह कहकर पीछे हट जाते हैं कि ‘जिसकी मर्जी हो, वह वैसा करे।’ खुशी की बात यह है कि नामदेव समाज के ज्यादातर लोग मृत्युभोज के खिलाफ हैं और खुलकर इसकी खिलाफत भी करने लगे हैं।
स्वीकार न करें निमंत्रण
जब भी मृत्युभोज का निमंत्रण मिले तो उसे दुख के साथ अस्वीकार कर दें। लोग जब ऐसे आयोजन में शामिल होते हैं तो उसे बढ़ावा मिलता है मगर जब समाजबंधु ही मृत्युभोज में शामिल नहीं होंगे तो आयोजक को अहसास हो जाएगा कि यह गलत परम्परा है। अगर किसी के परिजन का निधन हो जाए तो बजाय मृत्युभोज करने के वह केवल 12 ब्राह्मणों को भोज करा सकता है। इससे परिजन के प्रति उसकी श्रद्धा भी प्रकट हो जाएगी और मृत्युभोज जैसी बुराई को मुंहतोड़ जवाब भी मिल जाएगा।
-मनोज वर्मा, अजमेर
आखिर कब तक?
युवा न केवल समाज, बल्कि देश की भी नींव होते हैं। सवाल यह है कि जब मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को खत्म करने के लिए युवा प्रयास करता है तो उसे क्यों रोका जाता है? समाज से मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को मिटाने के लिए नामदेव न्यूज डॉट कॉम ने परिचर्चा का आयोजन कर सार्थक कदम उठाया है। आज युवा पीढ़ी को आगे आकर न केवल इस मुद्दे पर खुलकर चर्चा करनी चाहिए बल्कि इसे खत्म करने के पूरे प्रयास भी करने चाहिए। किसी के यहां मौत हो जाने पर वहां जाकर भोज में शामिल होना अपने आप में विडम्बना है। पता नहीं लोग कैसे मृत्युभोज में शामिल हो जाते हैं। युवाओं को इस कुप्रथा का जमकर विरोध करना होगा।
-पिंटू ए. छीपा, मुम्बई
सीमित करना ही उपाय
मृत्युभोज नि:संदेह अपराध और सामाजिक बुराई है मगर समाज से एकदम इसे मिटाना मुश्किल है। अलबत्ता इसे सीमित कर दिया जाए तो धीरे-धीरे यह कुरीति स्वत: ही खत्म हो जाएगी। परिजन की मृत्यु होने पर नौसर-नुकते में पूरे समाज को न्यौतने की बजाय केवल दूसरे शहर से आए नजदीकी रिश्तेदारों को ही भोजन कराया जाए। पहरावणी प्रतिबंधित है और इसका कड़ाई से पालन हो। लेहण बांटने की परम्परा खत्म होनी चाहिए। अब तक हुआ सो हुआ, मगर अब बदलाव होना चाहिए। संत नामदेव छीपा समाज सेवा संस्थान, पुष्कर की ओर से पूर्व में मृत्युभोज के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर इस पर रोक लगाई जा चुकी है।
-प्रहलाद दोसाया, मंत्री, संत नामदेव छीपा समाज सेवा संस्थान, पुष्कर
(विशेष : मृत्युभोज के खिलाफ ‘नामदेव न्यूज डॉट कॉम का अभियान जारी रहेगा। समाजबंधु इस बारे में अपने विचार अपनी फोटो के साथ हमें 9461594230 नंबर पर वाट्सअप के जरिए भेज सकते हैं। अगली कड़ी में हम नामदेव समाज की एक ऐसी शख्सियत से आपको रूबरू कराएंगे जो बरसों से मृत्युभोज के खिलाफ सामाजिक अलख जगा रहे हैं)