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नामदेव समाज ने किया मेवाड़ नाथ श्री एकलिंग जी मन्दिर पर ध्वजारोहण

न्यूज नजर डॉट कॉम

उदयपुर।  श्री नामदेव क्षत्रिय समाज उदयपुर के सैकड़ों समाज बंधुओं ने कैलाशपुरी स्थित मेवाड़ के प्रमुख ज्योर्तिलिंग,  मेवाड़नाथ श्री एकलिंग जी महादेव मंदिर पर “प्रभुश्री एकलिंग नाथ की जय” के जयकारों के साथ धोली ध्वजा चढ़ाई । वैशाखी पूर्णिमा के शुभ अवसर पर शुभ ब्रह्रम मुहूर्त में सैकड़ों समाज बंधुओं ने ध्वजा की पूजा अर्चना की और जयकारों के साथ मेवाड़ नाथ श्री एकलिंग जी के मंदिर के गर्भगृह पहुंचे ।

इसके बाद प्रभुश्री की आरती-अर्चना के बाद मंदिर के सेवादार पुजारियों द्वारा प्रभु श्री एकलिंग नाथ के जयकारों के बीच ध्वजारोहण का कार्यक्रम आरंभ हुआ।

ध्वजा मंदिर के गर्भगृह से धरण कराते हुए शिखर के गुंबद तक और शिखर कलश से होते हुए मंदिर के पिछवाड़े स्थित कंगूरो तक बांधी गई। इस दौरान सभी समाज बंधु प्रभु श्री एकलिंग नाथ के जयकारों के साथ पुण्य लाभ ले रहे थे । इसके बाद मंदिर के सभी पुजारियों व सेवादारों को उनके धजानेक का भुगतान किया गया ।

ऐसी किंवदंती है कि वर्षों पूर्व जब इस मंदिर का निर्माण हुआ और उस वक्त शिखर पर कलश और ध्वजा दंड स्थपित करने का कार्यक्रम हुआ तो कहते हैं कि अनेक बाधाएं आई। उस समय के महाराणा ने इस बाबत जानकारी जुटाई और पता चला की धारेश्वर नाम के एक श्रमिक ने मंदिर में सेवा परिश्रम कर मंदिर निर्माण में खूब मेहनत की और बदले में कोई पारिश्रमिक नहीं लिया, यही बड़ा कारण था कि शिखर पर कलश धारण नहीं हो रहा था। जब महाराणा ने श्री धारेश्वर जी से अपना पारिश्रमिक लेने का आग्रह किया तो श्री धारेश्वर ने पारिश्रमिक लेने से इंकार कर दिया लेकिन उस पारिश्रमिक के बदले में सिर्फ एक वचन मांगा कि मुझे पारिश्रमिक के बदले प्रभु के मंदिर के शिखर पर ध्वजा धारण कराऊंगा यही मेरा पारिश्रमिक है और भविष्य में भी मेरे परिवार के या मेरे मानने वाले इस कार्य को अनवरत करते रहेंगे । जब महाराणा ने स्वीकृति प्रदान की तो मंदिर पर कलश धारण हो गया, जयकारे लगने लगे और श्री धारेश्वर जी को तत्कालीन महाराणा ने मंदिर पर ध्वजा चढ़ाने का वचन दिया।

उसके बाद कालांतर में ध्वजा का कार्य 4 समाज मिलकर वहन करते आ रहे हैं। मूल रूप से ध्वजा के निर्माण में 4 समाज का सहयोग रहता है सबसे पहले बुनकर खत्री समाज जो कि कपड़ा बुनता है, उसके बाद रंगाई छपाई का काम करने वाले भावसार समाज और फिर इसका सिलाई का कार्य करने वाले दर्जी समाज (सुई दर्जी और छीपा दर्जी ) समाज मिलकर ध्वजा बनाने कार्य पूरा करते हैं। कालांतर में चार समाज को ध्वजा धारण कराने की अनुमति प्रदान की गई थी। उसके बाद समाजों में कुछ मनमुटाव के चलते श्री नामदेव टांक क्षत्रिय दर्जी समाज वैशाखी पूर्णिमा के अवसर पर मंदिर पर ध्वजा धारण कराने का अधिकार दिया गया और बाकी के तीन समाज पूर्व निर्धारित  चैत्र-अमावस्या के अवसर पर मंदिर पर ध्वजा चढ़ाते हैं।

गोपाल गोठवाल ने बताया कि यह परंपरा मंदिर निर्माण से लेकर अब तक अनवरत जारी है। यह पुण्य लाभ 36 कौम में से केवल 4 समाज को ही प्राप्त है जिसमें हमारा दर्जी समाज को भी सोभाग्य प्राप्त है जिसे हमारे पूर्वज और हम पूर्ण श्रद्धा और मनोभाव के साथ ध्वजा धारण कराते हैं।

भगवान श्री एकलिंग नाथ जी मंदिर 8 शताब्दी का बना हुआ है और 15 वीं शताब्दी में इसका जीर्णोद्धार हुआ।