हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि मध्यरात्रि को भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। दीपक ज्योतिष भागवत संस्थान के निदेशक ज्योतिषाचार्य कामेश्वर चतुर्वेदी ने बताया कि द्वापर युग में मथुरा पुरी में कंस के कारागार में भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में उच्च (वृष) राशि के चंद्रमा में भगवान श्री कृष्ण ने निशीथ बेला में रात के 12.00 बजे जन्म लिया था। इस वर्ष जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा वृष राशि में रहते हुए मनाई गई। इसके अलावा जन्माष्टमी पर सर्वार्थ सिद्धि योग एवं जयंती योग भी रहा है। मान्यता है कि सर्वार्थ सिद्धि योग में पूजा-पाठ और शुभ कार्य की शुरुआत करना अच्छा होता है।
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द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा के वृष राशि में रहते हुआ था। इस तरह का संयोग इस बार भी जन्माष्टमी के दिन बना है। साहित्याचार्य शरद चतुर्वेदी ने बताया कि इस वर्ष दृश्य गणित एवं प्राचीन गणित के पंचांगों के आधार पर स्मार्त एवं वैष्णव एक साथ 30 अगस्त को श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव मनाएंगे। इसके पहले 5 सितंबर 2015 को एक साथ जन्माष्टमी मनाई गयी थी।
आह भक्तों ने भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए भोग लगाकर आरती की। उन्हें माखन, मिश्री, दही, दूध, केसर, मावे, घी, मिठाई, आदि का भोग लगाकर पलना झुलाया। सभी मंदिरों में देर रात तक भीड़ रही।