न्यूज नजर : सावन की हरियाली तीज 3 अगस्त को है। यह त्यौहार पंजाबी, हरियाणवी और राजस्थानी महिलाओं के लिए बहुत खास है। हर महिला इस त्योहार का इंतजार करती हैं , खासकर नवविवाहिता, जो ससुराल में तीज मनाती हैं।
शादी के बाद पहली तीज महिला अपने मायके में मनाती हैं। जहां सास अपनी बहू के लिए ये प्यार भरा तोहफा यानी सिंजारा भेजती है। इसके बाद मायके से सिंजारा भेजा जाता है। इसके अलावा सगाई के बाद भी सास अपनी होने वाली बहू के लिए सिंजारा भेजती हैं।
सिंजारा उपहार स्वरूप भेजी जाने वाली डलिया या छोटी टोकनी होती है, जिसमें घर की बनी मिठाई, चूडि़यां, मेहंदी, घेवर आदि होते हैं। सिंजारा भेजे जाने की प्रथा के कारण ही इसे सिंजारा तीज कहा जाता है। छोटी तीज पर सुहागिनों का मेहंदी लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
उत्तर प्रदेश में मेहंदी के स्थान पर आलता या महावर लगाए जाने का चलन है। दोनों ही वस्तुएं सुहागिनों के लिए समान रूप से शुभकारी हैं। राजस्थान में इस दिन राजपूत लाल कपड़े पहनते हैं और माता पार्वती की सवारी निकालते हैं।
सिंजारे में लहरिया की साड़ी या अन्य परिधानों को शुभ माना जाता है। इस दिन नव विवाहिता सोलह श्रृंगार के साथ लाल जोड़े में तैयार होती हैं। मेहंदी रचाती हैं और सखी सहेलियों-ननद के संग घेवर का लुत्फ और बाग-बगीचे में झूलों का आनंद उठाती हैं।
घेवर राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में काफी मशहूर है. सिंजारे में विभिन्न चीजों के साथ इसे भी शगुन में शामिल किया जाता है।
हरियाली तीज 3 अगस्त को
हरियाली तीज श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। इसे श्रावणी तीज, सिंजारा तीज या छोटी तीज के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव और पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। इस दिन निर्जला उपवास और शिव पार्वती की पूजा का विधान है।
इस व्रत को निर्जला किए जाने का विधान है। इस दिन सुहागिनें विशेष रूप से हरी साड़ी और चूडि़यां पहनती हैं। इस दिन स्नान कर, सज-धज कर, प्रसन्न मन से व्रत का प्रारंभ करना चाहिए।
पूरे दिन मन ही मन भगवान शिव और पार्वती का स्मरण करें और उनसे उन्हीं की तरह अटल सौभाग्य का आशीर्वाद मांगें।
हरियाली तीज पर झूला झूलने का विशेष महत्व है। यह झूला भी अगर दो सखियां मिलकर, जोड़े में झूलें और झूलने के साथ शिव-पार्वती के गीत गाएं, तो इससे शिवजी शीघ्र प्रसन्न होकर मनोकामना पूरी करते हैं।
यह है हरियाली तीज की कथा
हरियाली तीज के व्रत की कथा स्वयं शिवजी ने पार्वती को उनका पिछला जन्म याद दिलाने के लिए सुनाई थी। कथा के अनुसार शिव जी ने पार्वती से कहा कि हे पार्वती! वर्षों पहले मुझे पति रूप में पाने के लिए तुमने हिमालय पर्वत पर घोर तप किया था। मौसम के विपरीत होने के बावजूद तुम अपने व्रत से डिगीं नहीं और सूखे पत्ते खाकर तुमने अपने व्रत को निंरतर रखा।
तुम्हारी ऐसी स्थिति देखकर तुम्हारे पिता पर्वतराज बहुत दुखी हो गए। इसी समय उनसे मिलने नारद मुनि पधारे। तुम्हारे पिता ने नारद मुनि की अगवानी की, तब उन्होंने कहा कि मैं भगवान विष्णु के कहने पर यहां आया हूं। आपकी पुत्री पर्वतों पर घनघोर तपस्या कर रही है। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उससे विवाह करना चाहते हैं। नारद जी की बात सुनकर तुम्हारे पिता बहुत प्रसन्न हुए और तुरंत ही प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
हे पार्वती! तुम अपने पिता के निर्णय से बहुत दुखी हुईं क्योंकि तुम पहले ही मुझे अपना पति मान चुकी थी। ऐसी स्थिति में तुमने सारी बात अपनी सखी को बताई। उसने तुम्हें घने जंगलों में छुपा दिया, जहां से सारे प्रयत्नों के बाद भी तुम्हें ढूंढा ना जा सका और तुम मेरी तपस्या में लीन रहीं। इसी समय तृतीया तिथि में तुमने रेत का शिवलिंग बनाया और सारी रात भूखे-प्यासे रहकर मेरी आराधना की। इससे प्रसन्न होकर मैं प्रकट हुआ और तुम्हारी इच्छानुसार मैंने तुम्हें स्वीकार किया
इसके बाद तुमने अपने पिता को सारी बात बताई और तुम्हारी इच्छा जानकर वे प्रसन्नता पूर्वक हमारे विवाह के लिए तैयार हो गए। इस तरह तुम्हारी घोर तपस्या से हमारा मिलन संभव हुआ।
इसीलिए श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को जो भी स्त्री तुम्हारी तरह पूर्ण श्रद्धा से मेरी तपस्या करेगी, मैं उसे मनोवांछित फल प्रदान करूंगा। जो भी सुहागिन स्त्री इस व्रत को विधि विधान से करेगी, उसे अचल सुहाग प्राप्त होगा।