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सैकड़ों किन्नरों ने पहली बार किया तर्पण


वाराणसी। श्री काशी विश्वनाथ की नगरी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में किन्नर समाज ने अपना नया इतिहास बनाया। पितृ पक्ष की मातृनवमी तिथि पर अपने पितरों के ऋण से मुक्ति पाने और उनकी आत्मा की शान्ति के लिए विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुण्ड के विमलोदत्त पिशाच ब्रम्हघाट पर विधि विधान से पिण्डदान श्राद्ध तर्पण किया।
बता दें कि देश की आजादी के बाद पहली बार किन्नर समुदाय के पिंडदान करने के अद्भुत नजारे को देखने के लिए यहां भारी भीड़ जुटी रही।

इसके पूर्व पिशाचमोचन कुण्ड पर पूर्वांह में उज्जैन के आचार्य किन्नर महामंडलेश्वर अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के अगुवाई में 14 किन्नर मठों के पीठाधीश्वर पहुंचे। यहां पहुंचने पर घाट के प्रधान तीर्थ पुरोहित पं मुन्नालाल पाण्डेय, प्रदीप पाण्डेय, मुख्य पुरोहित अनूप शर्मा, तारिणी न्यास परिषद सम्बद्ध गंगा महासभा के स्वामी जितेन्द्रानन्द सरस्वती, रविशंकर द्विवेदी, ऋषि् अजय दास ने स्वागत कर चन्दन लगाकर स्वागत किया। इसके बाद 21 कर्मकांडियो ने पहले स्वस्तिवाचन किया। फिर ब्रम्हा विष्णु महेश और वर्ण के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र का वेदी बनवाया।

 

फिर संकल्प दिलाने के साथ देवों, पितरोंं का स्मरण कुल गोत्र बंश का नाम लेकर त्रिपिण्डक श्राद्ध पिण्डदान तर्पण करा कर उन्हें पितरों के ऋण से मुक्ति दिलायी। श्राद्ध कार्यक्रम में पीठाधीश्वर भवानी मां, टिंकल, खुशी सिंह दिल्ली पीठ, सुधा तिवारी लखनऊ पीठ, किन्नर अखाड़े के गजानन गुरू, पीठाधीश्वर मुजरा नानी, प्रेमिका, मंगला महाराष्ट्र, बबली माई ठाकुर दिल्ली, पवित्रा माई, मनीषा उज्जैन, कमल उज्जैन, सन्तोषी बिहार पटना, सुमन मित्रा बिहार सहित 14 पीठाधीश्वर शामिल रही। इसके बाद धर्मसंघ में ब्राह्मणों, बटुकों को खिलाकर उन्हें दान दक्षिणा देकर आर्शिवाद भी लिया।
इस दौरान किन्नर महामंडलेश्वर अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने कहा कि किन्नर समुदाय ने मातृ नवमी के दिन अपने पूर्वजों के ऋण से मुक्ति के लिए पिंडदान किया। उन्होंने बताया कि मुगल शासन के बाद जिस तरीके से हिन्दू सनातन धर्म में किन्नरों का अस्तित्व ख़त्म हुआ वह बहुत कष्टदायी रहा। जबकि धर्म स्थापना में हर युग में किन्नरों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आज हम पुन: अपने आराध्य अर्धनारिश्वर बाबा विश्वनाथ की कृपा से सनातन धर्म में आ गये, इससे हमारा जीवन भी सतृप्त हुआ। गंगा महासभा के स्वामी जितेन्द्रानन्द ने कहा कि अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे किन्नरों को 311 साल बाद 15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने हक़ दिया, जिसके बाद किन्नर समाज ने उज्जैन में महामंडलेश्वर अखाड़े की स्थापना की। आज सनातन धर्म के लिए भी यह बड़ी बात है कि हिन्दू सनातन धर्म में जो 16 संस्कार होता है उसका पालन किन्नर समाज ने किया और अपने पितरों के ऋण से मुक्त हुए। उन्होंने कहा कि कुछ लोग किन्नरों के इस कर्मकांड पर सवाल उठा रहे हैं यह पूरी तरह अनुचित है।
शास्त्र के अनुसार अपने श्रद्धा के अनुरूप अपने पूर्वजों के ऋण से मुक्ति के लिए और उनकी आत्मा की शान्ति के लिए श्राद्धकर्म आवश्यक होता है। इसके लिए किसी के सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं होती।