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सिंहस्थ महाकुंभ के शाही स्नान की तिथियां

 

सिंहस्थ महाकुंभ के शाही स्नान की तिथियां घोषित कर दी गई हैं। तिथियां इस प्रकार हैं-

शाही स्नान-22 अप्रैल 2016, शुक्रवार, पूर्णिमा
कुंभ स्नान-03 मई 2016, मंगलवार
कुंभ स्नान-06 मई 2016, शुक्रवार
कुंभ स्नान-09 मई 2016, सोमवार
कुंभ स्नान-11 मई 2016, बुधवार
कुंभ स्नान-15 मई 2016, रविवार
कुंभ स्नान-17 मई 2016, मंगलवार
कुंभ स्नान-19 मई 2016, गुरुवार
कुंभ स्नान-20 मई 2016, शुक्रवार
शाही स्नान-21 मई 2016, शनिवार, पूर्णिमा

उज्जैन  महत्तम्
शायद यह बहूत कम लोगो को पता होगा कि देवताओ ओर देत्यो ने मील कर जो सागर मंथन किया था ओर उस मे से जो सामग्री निकली थी उस का बंटवारा भी उज्जैन में ही  किया गया था ओर जिस स्थान पर किया गया उसे रत्नसागर तीर्थ के नाम से जाना जाता है क्रमशः  ये सामग्री  निकली थी
1.विष 2. बहूत सा धन (रत्न मोती) 3.माता लक्ष्मी 4.धनुष 5.मणि 6.शंख 7.कामधेनु गाय
8.घोडा 9.हाथी 10.मदिरा
11.कल्प वृक्ष 12.अप्सराये
13 भगवान चंद्रमा .
14 भगवान धनवंतरि  अपने हाथो मे अमृत के कलश को लेकर निकले



उज्जैन  महत्तम्
जब भगवान शीव कि तपस्या कामदेव ने भंग कि तब भगवान कि द्रष्टि मात्र से कामदेव भस्म हो गये तब उन कि पत्नी रती ने भगवान शिव से कामदेव को जीवीत करने कि प्रार्थना कि तब भगवान ने उन्हे क्षीप्रा स्नान ओर शिवलिंग के पूजा के लीये कहा तब रति देवी ने वेसा ही किया जीस से कि उन्हे कामदेव पुनः पती रूप मे मीले जीस स्थान पर रती ने प्रतीदिन क्षीप्रा मे स्नान कर जीन शिवलिंग का पूजन किया वह उज्जैन  मे आज भी मनकामनेश्वर मंदिर से जाना जाता है

उज्जैन  महत्तम्
विश्व में सात सागर का अस्तित्व  है
संभव नही है कि सामान्य व्यक्ति  सातो सागर मे स्नान कर सके ईस लीये प्राचीन काल मे ऋषियो ने उज्जैन में ही  सात सागरो कि स्थापना कि जो कि आज भी उज्जैन  मे विध्यमान है
1.रूद्र सागर 2. विष्णु सागर
3. क्षीर सागर 4. पुरूषोत्तम  सागर 5. गोवर्धन  सागर 6. रत्नाकर सागर 7. पुष्कर सागर
जीन मे कि स्नान करने से विश्व के  सातो सागरो मे स्नान करने कि फल कि प्राप्ति होती है

उज्जैन  महत्तम्
माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप मे पाने के लिए एक वट वृक्ष  का रोपण कर उस के नीचे बेठ कर घोर तपस्या की  जीस से कि भगवान शिव  उन्हे पति रूप मे प्राप्त  हूये जीस वृक्ष के नीचे तपस्या की थी उसे एक समय मुगल हमले मे काट दिया गया था पर वह एक हि रात्री मे पुनः हरा भरा हो गया तब मुगल सेनिको ने उसे फिर काट कर उस के ऊपर विशालकाय  लोहे के तवे जडवा दिये पर पुनः एक हि रात्री मे वह वृक्ष  तवो को फाड कर पुर्व स्वरूप मे आ गया तब मुगल सेना डर कर वहा से भाग खडि हूई वह वृक्ष  उज्जैन में  आज भी विध्यमान है जीसे सिद्धवट मंदिर से  जाना जाता है

उज्जैन  महत्तम्
भगवान राम वनवास के दिनो मे उज्जैन में  आये थे ओर उन्होंने  भगवान गणेश कि स्थापना कि ओर राम जी ओर सीता जी ने मीलकर उन का पुजन किया जो आज भी उज्जैन में  चिन्तामण गणेश के रूप मे जाने जाते है ईसी मंदिर  परीसर मे एक कुंआ भी है जीसे लक्ष्मण  जी ने माता सीता कि प्यास बुझाने के लिए एक ही बाण मे निर्मित किया  था