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सफेद घोड़े पर लिपटे काले नाग…

न्यूज नजर : वास्तव में वो घोड़ा सफेद रंग का था लेकिन काले नाग बड़ी सघनता से उसके ऊपर लिपट गये और देखते ही देखते वो सफेद रंग का घोडा काले रंग का दिखने लग गया। इस खेल में सफेद घोड़े और काले नागों का तो कुछ भी नही बिगडा क्योकि उनका स्वतंत्र अस्तित्व था लेकिन हालातों की मंडी में सफेद घोड़ा हार गया और काले रंग का घोडा जीत गया।

 

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

बस, कहानी कि शुरुआत यही से ही होती है। हारा हुआ सफेद रंग का घोडा सोच में पड गया कि मैं तो सफेद रंग का ही था और मुझे सफेद कहने वाला हार गया ओर जिसनें साज़िश रच कर मेरे रंग को काले नागों से ढककर काला साबित कर दिया। मुझे काला घोषित करवा कर वो जीत गया जबकि मै काले रंग का नहीं था।

एक ऋषि की दो पत्नियों के बीच एक बार शर्त लग गई सूर्य के घोड़े को देख कर कि इसका रंग कौनसा है। घोडा सफेद रंग का था तो एक स्त्री जो नागों की माता थी उसने कहा हम में से जो भी हार जायेगा वो ग़ुलाम एक दूसरे का बन जायेगा। दोनों शर्त पर तैयार हो गयी। तब नागो की माता बोली यह घोड़ा काले रंग का है तब दूसरी स्त्री ने कहा ये सफेद रंग का है। दोनों मे विवाद छिड़ गया ओर उन्होंने कहा हम दोनों वहां चलकर घोडे को देख कर ही फैसला करेंगे।


इसी बीच नागों की माता ने नागो को आदेश दिया कि तुम सब घोड़े के लिपट जाओ ओर इसका कोई भी अंग सफेद दिख ना पायें। नागों ने ऐसे हीं किया ओर घोड़े के लिपट गयें ओर घोड़ा जो सफेद रंग का था वो काला दिखाईं देने लगा। दोनों स्त्रियो ने देखा तों घोड़ा काला दिखाईं दे रहा था। इस खेल में नागों की माता जीत गयीं। यह अति पौराणिक कथा है।
ये अति प्राचीन कथा इस बात का संकेत देतीं हैं कि व्यक्ति का जब स्वार्थ बढ जाता है तो वो येन केन प्रकारेंण अपने स्वार्थो को साधने के लिए कुछ भी कर सकता है। नकारात्मक विचार रख वो अपनी झूठी विजय व मान सम्मान को बनाये रखने के लिए व्यक्ति सच को झूठ मे ओर झूठ को सच मे बदल सकता है। ओर बाहुबली होने पर तो ये मार्ग बडे आसान हो जाते हैं।

अभोतिक संस्कृति के आभूषण सत्य धर्म कर्म मूल्य विश्वास मान्यताऐ नियम कानून कायदे आचार विचार व्यवहार यह सभी मौन होकर खडे रह जाते हैं और विधाता की ओर देखने लग जाते हैं और हार जाते है।

कलयुग खड़ा हंसता हुआ कहता है कि ये प्राणी मेंरे काल का यहीं नियम हो जो मेरे गुण धर्म को अपना लेगा वो सुखी और समृद्ध रहेगा क्यो कि मै भोतिक संस्कृति का जनक हू और मेरा भगवान मेरा लोभ लालच है और मै इसे बनाये रखने के लिए कुछ भी कर सकता हू। मै अभोतिक संस्कृति का चोला पहन कर सहानुभूति बटोरता हू तथा भौतिक बन उनका भोग करता हू उसके लिए मेरे ही कलयुगी कानून काम आते हैं।

संत जन कहते हैं कि हे मानव कलयुग में जो भी हो रहा है उसे जाने दे ओर अपने लक्ष्य की ओर बढ। हारने पर भी तू विजय की ओर अग्रसर होगा ओर एक दिन तेरी साधना सफल होगी क्यो कि कलयुग भी अमर नहीं रहने वाला है और ये सर चढ कर बोलता शनि एक दिन इसे जंगल की ओर छोड़ जायेगा।
इसलिए हे मानव तू सत्य के मार्ग पर ही बढ तेरा जीवन सुधर जायेगा ओर असत्य जानवरों से कुचला जायेगा।