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शरण तुम्हारी… मैं तो शरण तुम्हारी…

न्यूज नजर: अपनी कार्य योजना को फलीभूत ना होते हुए देखता हुआ मन जब हताश और निराश हो जाता है तो वह मौन होकर बैठ जाता है और सोच में पड जाता है कि पहाड़ों जैसी इस विपदा पर कैसे विजय पाई जा सकती है। विपत्तियों के इस महादैत्य का विनाश कैसे होगा। मौन मन उस चिन्तन और मनन में लग जाता है। यह चिंतन मनन जब मस्तिष्क तक पहुंच जाता है तो एक नई आशा की किरण का उदय होता है।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

मस्तिष्क चूंकि हर शक्तियों का अज्ञात खजाना होता है, जिसकी थाह आज तक कोई भी ज्ञान और विज्ञान नहीं जान सका भले ही संरचना में ऊपजे दोषों का उपचार भी कर लिया हो। शरीर चूंकि इस ब्रह्मांड का पिंड है इसलिए ब्रह्मांड में व्यापत गुप्त रहस्यों को आज भी विज्ञान व ज्ञान दोनों ही खोज रहे हैं और रोज नए राज ब्रह्मांड के सामने आ रहे हैं। चिंतन और मनन करता मन शनैः शनैः उस रसायन को ढूंढने में कामयाब हो जाता है जिससे विपत्तियों का नाश हो ओर आगे बढ़ने के लक्ष्य आसान हो।

मन के मनन और चिंतन की यही सोच गुप्त शक्ति बन जाती है और नव रणनीति के जरिए अपनी कार्य योजना को फलीभूत करती है। मन की ये अवस्था उसे श्रेष्ठ उपासक और तकनीक का ज्ञाता बना देती है, जो दिन व रात अपनी तकनीक से असफल पुरानी रातों को नव रातों में बदल देती हैं। यही ज्ञान गुप्त शक्ति के गुप्त नवरात्रा कहलाने लग जाते हैं।

धार्मिक मान्यताओं में भी शक्ति अर्जन का सम्बन्ध बदलती ऋतुओं में उत्पन्न होने वाली गुप्त सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से जोडा गया है जहां व्यक्ति मनन ओर चिंतन के साथ इन ऋतुओ की सकारात्मक ऊर्जा के संचय व अर्जन से लाभ उठाए तथा नकारात्मक ऊर्जा से बचा रहे। इन मान्यताओं में दो नवरात्रा प्रकट रूप से आमजन मनाते हैं और दो गुप्त रूप से साधक योगी और तपस्वी जन मनाते हैं।

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमीं तक तथा आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमीं तक प्रकट नवरात्रा आमजन मनाते हुए इन ब्रह्मांडीय शक्ति का अर्जन करते हैं तथा माघ मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमीं तक तथा आषाढ़ मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमीं तक गुप्त नवरात्रा साधक व योगीजन उस चिन्तन और मनन में लगे रहते हैं और उसके आधार पर वह शक्ति के अर्जन से जन कल्याण करते रहे।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, हर दिन मनन चिंतन करता हुआ हर रोज की समस्याओं के समाधान करता है और यह मनन और चिंतन एक तात्कालिक होता है जिसकी बारम्बारता नहीं रहती, ये खंडित हो जाता है और ऊर्जा पुंज का स्थायी निर्माण नहीं होता। ऊर्जा पुंज का भारी निर्माण बारम्बारता के द्वारा ही होता है और ये बारम्बारता काल और स्थान पर ही आधारित होती है वही ऊर्जा पुंज का निर्माण कर हर समस्या का समाधान करने में कामयाब होती है।

इसलिए हे मानव, तू मनन और चिंतन में सदा ही मन को बनाए रख, भले ही तू सभी क्षेत्रों में सक्षम हो। कारण यह कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा ऋतु परिवर्तन पर सकारात्मक ओर नकारात्मक प्रभावों को लाती है इसलिए प्रकृति के गुण धर्म के अनुसार ही मनन ओर चिंतन कर ताकि हर समस्याओं के नए समाधान निकल आएं और गुप्त शक्ति के अदृश्य देव के नवरात्रा सफल हो जाएं। प्रकृति की शरण ही इस जगत का अंतिम सहारा है।