बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष
रांची। बुद्ध पूर्णिमा अर्थात बुद्ध का जन्मदिन। एक राजकुमार के बुद्ध होने की कहानी विलासिता के स्वर्ग से निकलकर भिक्षुक जीवन जीने की कहानी है। यह उस संदेश की भी कहानी है कि इंसान को सुख विलासी जीवन जीने से नहीं मिलता, न्यूनतम साधनों के साथ संयमी जीवन जीने से मिलता है। भगवान बुद्ध आठ सालों तक भिक्षुक रहे और इसकी शुरुआत उन्हांेंने अपने महल से भागकर की। एक रात वह अपनी पत्नी- अपनी युवा पत्नी और नवजात शिशु को छोडक़र आधी रात को घर से निकल पड़े। वो एक राजा की तरह नहीं निकले, बल्कि एक चोर की तरह निकले थे- रात में घर छोडक़र गए थे। यह कोई आसान फैसला नहीं था। वह एक ऐसी पत्नी से दूर नहीं जा रहे थे, जिसे झेलना उनके लिए मुश्किल हो रहा हो। वह ऐसी स्त्री से दूर जा रहे थे, जिससे वह बहुत प्यार करते थे। वह नवजात बेटे से दूर जा रहे थे, जो उन्हें बहुत प्यारा था। वह अपनी शादी की कड़वाहट की वजह से नहीं भाग रहे थे। वह हर उस चीज से भाग रहे थे, जो उन्हें प्रिय थी। वह महल के ऐशो-आराम से, एक राज्य के राजकुमार होने से, भविष्य में राजा बनने की संभावना से, वह उन सभी चीजों से भाग रहे थे, जिन्हें हर आदमी आम तौर पर पाना चाहता है। लेकिन वे अपनी जिम्मेदारियों से भागने वाले कोई कायर नहीं थे। यह एक इंसान के साहस और ज्ञान की तड़प का परिणाम था। उन्होंने अपना महल, अपनी पत्नी, अपना बच्चा, अपना सब कुछ त्याग दिया और ऐसी चीज की खोज में लग गए, जो अज्ञात थी। गौतम एक राजा थे, मगर उन्होंने एक भिक्षुक का जीवन जिया। जब वह एक भिक्षुक की तरह चल पड़े थे, तो सडक़ पर चलते आम लोगों ने बाकी भिक्षुकों की तरह ही उन्हें भी दुत्कारा था। उन्हें उन सभी चीजों से गुजरना पड़ा जो किसी भिक्षुक को अपने जीवन में झेलना पड़ता है। जबकि वह एक राजकुमार थे और उन्होंने जान-बूझकर भिक्षुक बनने का फैसला किया था। भगवान बुद्ध की ज्ञान की खोज तब शुरू हुई जब उन्होंने एक ही दिन तीन दृश्य दिखे। एक रोगी मनुष्य, एक वृद्ध और एक शव को उन्होंने देखा। बस इतना देखना था कि राजकुमार सिद्धार्थ गौतम निकल पड़े ज्ञान और बोध की खोज में। अपनी खोज में वह जानना चाहते थे कि इंसान को दुख क्यों होता है। लंबे समय तक चिंतन-मनन करने के बाद उन्हें पता चला कि इंसान नाशवान चीजों से प्यार करता है। यही चीजें जब उससे बिछुड़ जाती हैं तो उसे दुख का एहसास होता है। वास्तव में जिससे उसे प्रेम होना चाहिए उससे वह माया से वशीभूत होने के कारण जीवनभर प्रेम कर ही नहीं पाता। मनुष्य को ईश्वर से प्रेम होना चाहिए। पर वह संसारिक वस्तुओं से प्रेम करता है। यही कारण है कि वह दुख को प्राप्त करता है। उन्हें मालूम हुआ कि कामना ही प्राणी मात्र के दुखों का कारण है। मनुष्य कामना त्याग दे तो वह बुद्धत्व को प्राप्त कर सकता है। अपनी ज्ञान साधना की यात्रा में उन्होंने यह भी जाना कि परम आनंद संसारिक वस्तुएं हासिल करने में नहीं है उन्हें देने में है। ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने यही संदेश देने की कोशिश की। उनकी आध्यात्मिक कामयाबी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके जीवन काल में ही उनके साथ 40 हजार बौद्ध भिक्षु थे। अपने बुद्धत्व से राजकुमार सिद्धार्थ अमर हो गये। उनका धर्म आज भी लोगों की चेतना में रचा-बसा है।