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ये माया काम ना आयेगी, ये माया पाप की ढेरी है…

न्यूज नजर : हवा को गलतफहमी होती है कि वो जीवों को प्राण देकर भविष्य को देखना जानती है तथा तूफान बन कर उनके भविष्य को खत्म करना भी जानती है। इसी गफलत का शिकार बन हवाएं जब प्रचण्ड तूफान बन किसी का भविष्य खत्म करने को तेज गति से आगे बढती हैं तब प्रकृति को भी हंसी आ जाती है ।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

कारण वो प्रचण्ड विकराल तूफान शोर मचाता हुआ जब आगे बढता है और एक चट्टान से टकरा कर धराशायी हो जाता है, विषहीन सांप की तरह फुफकारता रहता है।यह सब माया के वशीभूत होता है । क्योंकि माया पर विजय कोई पा नही सकता है।

 एक बार नारद जी बैकुंठ लोक में गये। वहां नारायण तथा लक्ष्मी को देखकर बोले। हे विष्णु आप मायापति होकर भी लक्ष्मी रूपी माया में फंसे हुए हो जबकि मैंने माया पर विजय पा ली है । नारद जी की बात सुनकर विष्णु जी मुस्कराए तथा नारद जी को साथ लेकर एक जंगल में पहुच गये। वहां सुन्दर एक तालाब था। नारद को कहा कि नारद इस सरोवर में तुम स्नान करो। अपनी वीणा और वस्त्र नारायण के हाथ में दे नारद ने तालाब में डुबकी लगाई। जैसे ही नारद बाहर निकले उनका रूप परिवर्तन हो गया वो आदमी से औरत बन गए।
        नारदजी को बडा आश्चर्य हुआ, बाहर कोई नहीं था। अतः वह बाहर बैठ गये । इतने में वहा एक राजा आया तथा नारद जी से शादी कर ली क्योंकि नारद जी का शरीर औरत का बन गया था। राजा उसे अपने साथ घर ले गया। कई बरस बाद नारद जी के संतान हुई ।एक बार पडोसी राजा ने उनके यहा पर आक्रमण कर दिया ओर उनके सभी पुत्र मारे गए । नारद जी व उनका पति रोने लग गये तथा मृत बच्चो के तर्पण हेतु तालाब में गये ।नारद जी ने जैसे ही डुबकी लगायी वो वापस अपने मूल स्वरूप में आ गये तथा तालाब से बाहर निकल गये। वहां विष्णु जी खड़े थे वीणा और वस्त्र लेकर।
         नारद जी समझ गए कि वो माया में फंस गये थे तथा पछता रहे थे। फिर वो अपने पिता ब्रह्मा के पास गए और उन्हे आप बीती सुनाई ।ब्रह्मा जी बोले हे पुत्र मानव सदैव माया के वशीभूत रहता है और वो  इस भ्रम का शिकार हो जाता है कि मै ऊंचा हू वो नीचा है ।मै ज्ञानी हू वो अज्ञानी हू ।सबसे ऊंचे तत्व सात्विक से मेरी उत्पति हुयी है  और वो तामसी तत्व मे जन्मा है।
                इसी मिथ्या भ्रम का शिकार हो वो प्राकृतिक सत्य के मार्ग को छोड़कर मिथ्या के गलियारे मे भटकता हुआ एक परमात्मा के कइ परमात्मा बना किसी को भी परमात्मा का नही बनने देता है। इस जगत मे मायापति और माया ही सर्वत्र ओर सर्वसर्वव्यापी है । उसका नाम अंत ओर अनन्त तक हैं ।  इस जगत का एक तत्व है दूसरा तत्व ही नही है ।इसलिए आप ,क्या है , इसकी इतनी अहमियत नही है वरन् आप क्या कर रहे है यही मायने रखती है । अंहकार को काल के गाल मे डाल हंस की तरह उड ओर राम नाम के मोती बीन ।

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