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यमुना नदी का उफान याद दिलाता है अवतार

आज दिल्ली में यमुना नदी का उफान देख कर ऐसा लगता है कि कोई अवतार होने वाला है और यमुना नदी उस अवतारी शक्ति के चरण स्पर्श करने के लिए लगातार खतरे के निशान से भी ऊपर बह रही है। काश हिन्दू धर्म मत में इस बार जयेष्ठ अधिक मास नहीं होता तो यह महीना भाद्रपद मास ही होता।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

द्वापर युग में भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी की रात कृष्ण अवतार होना ओर यमुना नदी का ऊफान उनके चरण स्पर्श तक ऊँचा होना क्योकि वासुदेव जी कृष्ण अवतार के बाल रूप को सूप में सुलाकर सूप को सिर पर उठा कर यमुना नदी पार कर गोकुल ले जा रहे थे।
पौराणिक इतिहास की यह कथाएं बताती हैं कि जब-जब पृथ्वी पर विपदा और अत्याचार बढने लगे व जन मानस अत्यधिक पीड़ित होंने लगा तब तब नईं शक्ति का उदय हुआ और पृथ्वी पर बढ़े भार और अत्याचार खत्म हुए।

आज पूरे विश्व में कमोबेश सभी जगह जनमानस भारी असंतोष व अत्याचारों के बीच उन सांसो को ले रहा है जहां पर सामाजिक राजनैतिक व आर्थिक सांस्कृतिक तथा धार्मिक माहौल प्रदूषित होकर लगातार खतरे के निशान से ऊपर बढ रहा है।


विश्व स्तर पर भुखमरी, शरणार्थी के रूप में भटकता मानव, अपनी सुरक्षा के लिए दर्दीले आंसू बहाती अबलाऐ व बालिकाएं, बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसता मानव आदि समस्याऐ उन दानव के अत्याचारों की याद दिलाते हैं जहां तारकासुर से लेकर रावण ओर कंस जैसे असुरो ने अपने अपने आप को स्थापित करनें के लिए सब कुछ नष्ट कर दिया। तब इनके आंतक को मिटाने के लिए अवतारों ने प्रकट होकर सभी के आतंक का अंत कर जन मानस को राहत दिलाई।
यमुना नदी का उफान देखकर पौराणिक कथाओं के अवतारो का स्मरण होने लगता है कि नये अवतार के उदय का काल शुरू होने वाला हैऔर कृष्ण रूपी शक्ति विश्व में सर्वत्र पीड़ित जनमानस को राहत देने के लिए प्रकट होने वाली है।
संत जन कहतें है कि हे मानव यह प्रकृति हर दिन अपने नयें अवतारों में प्रकट होती है और अपनी लीला समूचे विश्व को प्राकृतिक प्रकोप के रूप में बता कर विश्व के बलवानो को चुनौती देती है कि हे मानव मेरे बल के सामने तेरा कोई अस्तित्व नहीं है।
इसलिए हे मानव तू इस प्रकृति के संकेत को समझ यह बोलती नहीं हैं पर सब कुछ कर देती हैं। सकारात्मक ओर नकारात्मक दोनों ही तरीकों से यह अपनी लीला को अंजाम देतीं हैं। इस लिए हे मानव तू इसके रूप को समझ और उसी अनुरूप व्यवहार कर।

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