न्यूज नजर : जीवन रूपी यात्रा में शरीर को मन और आत्मा के वशीभूत होकर रहना पडता है। आत्मा वो प्राण वायु रूपी ऊर्जा होती है जो शरीर को जीवित रखती है और मन शरीर के निर्माण तत्वो के गुणों पर राज करता है और जीवो को अपने डंडे से हांकता है। चाहे विद्या बुद्धि ज्ञान कुछ भी संदेश दे लेकिन मन मनमाना होता है और वो क्या कर सकता है अंत तक उसकी थाह को जानना आसान नहीं होता है।
दूसरी प्राण वायु रुपी ऊर्जा जिसे आत्मा कहते हैं वो शरीर को जिंदा रख कर उस शरीर धारी को नाम देती है और वो कब इस शरीर से निकल कर बाहर चली जाएं उसकी थाह पाना भी नामुमकिन ही होता है। शरीर के निर्माण के तत्व ओर उनके गुण भले ही घायल होकर मन को मूर्छित कर दे फिर भी प्राण वायु रुपी ऊर्जा शरीर पर कब्जा जमाए बैठी रहतीं हैं भले ही शरीर वर्षो तक अपनी सुध बुध खो कर पडा रहे। अगर प्राण वायु रुपी ऊर्जा निकलना चाह रही है तो वो प्राण बचाने वाले यंत्रों के बीच में से ही निकल कर चली जातीं हैं।
मानव के पास भले ही कोई भी सत्ता क्यो ना हो यह सभी के लात मारकर शरीर से निकल जातीं हैं और शरीर मृत घोषित हो जाता है और मन का जर्जर अंत हो जाता है। मन ओर प्राण वायु रुपी ऊर्जा के इस खेल को कोई भी ज्ञान विज्ञान ओर दर्शन चिंतन नहीं पाया भले ही उसने जीने की कला सीखा दी या मोक्ष के मायने समझा दिये।
संत जन कहते हैं कि हे मानव इस शरीर रूपी पिंड के मार्ग में आत्मा और मन दो ठग की तरह होते हैं जो शरीर को प्रसिद्ध या बदनाम कर देते हैं और ये दोनों तों इस शरीर को लात मार कर निकल जाते हैं और नाम धारी शरीर के इतिहास को लिखवा जाते हैं। आत्मा और मन के वशीभूत यह शरीर अपने महाभूतों के गुणों को गंवा देता है और वापस पंच महाभूतों में ही विलीन हो जाता है।
इसलिए हे मानव तूझे इन दोनों ठगो के बीच में ही जिन्दगी का गुजर बसर करना होगा इसलिए तू सावधान हो कर रहना ओर अपने गुणों की बुद्धि से मन व आत्मा को संतुलित रखने के प्रयास करना क्यो कि यह बुद्धि आत्मा को तो नहीं पर मन को नियंत्रित कर सकतीं है।