सृष्टि को बचाने के लिए स्वयं विषपान करने वाले भगवान शिव को समर्पित महेश जयंती देशभर में 3 जून को धूमधाम से मनाई जाएगी। खासकर माहेश्वरी समाजबंधु इस दिन अपने आराध्य की विशेष पूजा अर्चना करेंगे। सभी जगह महेश जयंती महोत्सव की धूम शुरू हो चुकी है और रोजाना विविध आयोजन किए जा रहे हैं।
नवमी ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। महेश नवमी माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति का दिन है। माना जाता है कि माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति भगवान शिव के वरदान स्वरूप हुई है। यह दिन भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना के लिए समर्पित है।
महेश स्वरूप में आराध्य भगवान शिव पृथ्वी से भी ऊपर कोमल कमल पुष्प पर बिल्व पत्र, त्रिपुंड, त्रिशूल और डमरू के साथ लिंग रूप में शोभायमान होते हैं। इस दिन विशेषकर भगवान महेश के विविध तापों को नष्ट करने वाले त्रिशूल का विशिष्ट पूजन किया जाता है।
शिवलिंग पर भस्म से त्रिपुंड लगाया जाता है जो त्याग व वैराग्य का सूचक है। शिव पूजन में डमरू बजाए जाते हैं। शिव का डमरू जनमानस की जागृति का प्रतीक है। भगवान महेश की विशेषकर कमल पुष्पों से पूजा की जाती है।
इस दिन भगवान महेश का लिंग रूप में विशेष पूजन करने से व्यापार में उन्नति प्राप्त होती है। इस दिन भगवान महेश को पृथ्वी के रूप में रोट चढ़ाया जाता है।
यह भी पढ़ें
ऐसा शिवलिंग जिसके आकार में हर साल होती है बढ़ोत्तरी
goo.gl/ZJI5vi