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मनभेद की तलवार हकीकत को भटकाती है 

 

   

 

    मनभेद दुनिया की वो जागीर होती है जिसके दस्तावेज पर नफरत के हस्ताक्षर होते हैं। इन दस्तावेज में उन कहानियों को दर्ज कर दिया जाता है जो हकीकत की दुनिया से दूर ओर बहुत दूर होती है।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

कुंठा जलन ईर्ष्या की स्याही और भेद रखने वाली क़लम उस इबारत को बयां करती है जिसमें मन को भेद का जामा पहना कर उसे, उस राजा के पद पर आसीन कर देती हैं जो परिवार समाज जाति वर्ग धर्म व्यवस्था तथा न्याय को मनभेद की तलवार से हांक कर अपनी व्यवस्था को अंजाम देता है।

            मनभेद जब धर्म और राजनीति में प्रवेश करता है तो वो उस समाजशास्त्र की रचना करता है जिससे समाज ओर संस्कृति के मूल्यों को समूह जाति वर्ग भाषा लिंग के अनुसार बांट कर उनकी अलग-अलग पहचान करा दी जातीं हैं ओर इन सब को एक की जगह अनेक बना दिया जाता है। इस तरह से धर्म व राजनीति बिखराव की ओर चलीं जातीं हैं और बंटा हुआ है समाज अपनी शक्ति के अनुसार धर्म को ओर राजनीति को अपने अपने तरीकों से परिभाषित करने लग जाता है।

 

       यह परिभाषाए समाज मे संधर्ष को जन्म देकर एक दूसरे को लांछित करने लग जाती है और सत्य क्या है वो भटक कर बट वृक्ष के नीचे बैठ कर मोन हो जाता है। और खो जाता है उस जहाँ मे वहां पर मनभेद तों दूर मन की जगह आत्मा की आवाज उस अमरता के दर्शन कराती है और घर्म ओर समाज की क्लिष्टता को खत्म कर जीवन के मार्ग को आसान बनाती हैं और एक नये ढंग से समाज शास्त्र को लिख कर धर्म ओर राजनीति को अलग-अलग चशमो से देखने की ओर बढाती है। जहां राजनीति अपने प्रजा धर्म का निर्वहन करने की ओर बढ़ती है तो धर्म कल्याणकारी कदमों से सही रास्तोको खोज कर समाज ओर राजनीति से दूर हो जाता है।

          संत जन कहतें है कि हे मानव तू मनभेद रख कर किसी को भी, कुछ समय तक अपना बना सकता है लेकिन जब यह मनभेद प्रकट होता है तो सच झूठ मे ओर झूठ सच मे बदल जाता है और टूट जाते हैं वो बंधन जिसमें प्रेम बंधा हुआ होता है ।

                इसलिए हे मानव तू मतभेद भले ही रख ओर अपनी मान्यताओ की हर पवित्रता को बनाये रख लेकिन मनभेद रखने से यह पवित्रता स्वत ही नष्ट हो जायेगी और तू उस चोराहे पर अकेला खडा रहेगा जहां चारो दिशा में तूझे कुछ भी नजर नहीं आयेगा।