न्यूज नजर : बसंत पंचमी 29 जनवरी को प्रातः 10 बजकर 45 मिनट पर शुरू होकर 30 जनवरी को दिन को 1 बजकर 19 मिनट तक रही। माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी बसंत पंचमी के नाम से जानी जाती है। बसंत पंचमी यह संदेश लाती है कि हे मानव यह शिविर अब विदाई की ओर बढ रही है और तेरे हाथ पांव तथा दांत जो थर थर कांप रहे हैं अब उसके स्थान पर तन मन में प्रकृति के मधुर संगीत का अलाप करतीं हुईं बसंत ऋतु आ रही है।
19 फरवरी को सायन मीन के सूर्य के साथ बसंत ऋतु शुरू हो जायेगी और फाल्गुन मास का आगाज़ कर देंगी। माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी बसंत का गुप्त संदेशा ला कर जीव और जगत को सुखी बना देतीं हैं और ज्ञान की जोत जला कर जीवन में नवाचारों को बढा कर बुद्धि भ्रम और संशय दोनो को खत्म करतीं हैं। विभिन्नता में एकता का संदेश देकर सबको बंसती रंग में रंग जाती है। धार्मिक मान्यताओं में ज्ञान की देवी सरस्वती की इस दिन पूजा उपासना होती हैं।
हे धरती तू सब को धारण करती है इसलिए तुझे धरती कहा जाता है। तुम पर बसे सजीव व निर्जीव के अतिरिक्त भी तू ब्रह्मांड के आकाशीय पिंडो ग्रह नक्षत्रों के प्रभावों को भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों को भी धारण करतीं हैं। इस कारण हर बार तेरे रंग रूप श्रृंगार बदलते रहते हैं।
तू निरंतर गतिशील रहती है और आगे बढ़ती हुई सूर्य की परिक्रमा करतीं हैं। अपनी धुरी पर भ्रमण करती हुई चौबीस घंटे में एक बार घूम जाती है, दिन रात बना देती है और आगे बढ़ती हुई आकाश के तारामंडल की राशि को पार करतीं हुईं ऋतुओं का निर्माण करतीं हुईं उन ऋतुओ के रंग में रंग जाती है। इस कारण सर्दी गर्मी बरसात हेमन्त शिशिर ओर बंसत ऋतुऐ सदा तेरा श्रृंगार कर तेरे पर निवास करने वाले सजीव और निर्जीव सभी को प्रभावित कर देतीं हैं।
ऋतुओं का हर श्रृंगार तेरे ऊपर अपना प्रभाव छोड़ जाता है और तेरे पर बसने वालों को नवाचार से अवगत करवा जाता है। अपनी धुरी पर भ्रमण करता हुआ सूर्य जब मीन और मेष राशि में प्रवेश करता है तब बसंत ऋतु से तेरा श्रृंगार कर तुझे उमंग और उत्साह की नवयौवना बना देता है।
तू सर्वत्र गैदा गुलाब चम्पा चमेली जूही के फूलों से महक जाती है और खेतों में पीली पीली सरसों फ़ूल जाती है। आम के वृक्षों में भी हरियाली फैल जाती है। तेरे वन उपवन को यह फूलों का श्रृंगार करा देती है और तेरे इस श्रृंगार से तुझ पर रहने वाले उत्साह उमंग से भर जाते हैं। सूर्य भी प्रचंड उत्तरायन की ओर बढता हुआ तेरे पर सर्दी और शिशिर ऋतु के प्रंचड प्रकोप से मुक्ति दिलाने लग जाता है।
धरती पर छाये हुए पीले रंग के फूल समृद्धि की ओर बढने का संदेश देने लग जाते हैं और धार्मिक जन इन्ही संदेशों को ज्ञान के रूप में मानता हुआ प्रकृति की शक्ति को ज्ञान की देवी सरस्वती के रूप में पूजता है। अदृश्य शक्ति के अदृश्य देव के ठिकानों पर पीले रंग के फूल अर्पण कर बसंत को पेश कर खुशी ओर उत्साह उमंग के गीत प्रस्तुत कर अपनी खुशी का प्रकट करता है तथा अदृश्य शक्ति के अदृश्य देव को आभार मान कर नतमस्तक होता है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव वास्तव में यह सब प्रकृति का ही करिश्मा है जो अपने नियमों, गुणों से व्यवहार करता हुआ सदा सभी को सुखी समृद्ध बनाता है और संदेश देता है कि हे मानव इस जगत में तू उत्पन्न हुआ है तो मेरे गुण धर्म के अनुसार ही अपना कार्य कर। अपने में नवाचार सदा लेकर आ। नवाचार ही नये ज्ञान का भान करवाते हैं, बुद्धि और ज्ञान का विस्तार करते हैं।
इसलिए हे मानव तू भी बसंत की तरह व्यवहार कर और अपने ज्ञान में वृद्धि की नव चेतना को जागृत कर तो निश्चित रूप से यह बंसत पीली कपडे पहनने तक ही सीमित नहीं रहे वरन् विकास के विस्तार की ओर बढे, तू सभी के जीवन में बहार बन कर आये।