न्यूज नजर : ठंड के कहर से अब मुक्त होने का समय आ रहा है और काल चक्र ऋतुओं का भेदन करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा है। उस गुप्त शक्ति का उदय करने जा रहा है जहां प्राणी जन अपने आप को सुखी और समृद्ध बनाए रखेगा।
गुप्त ऊर्जा का संचय कर अहंकारी गर्मी और उस प्रलयकारी वर्षा के प्रकोप, कडाके की ठण्ड में कम्पकपाती शिशिर ऋतु की मार के जख्म भरेगा, उमंग और उत्साह के साथ जीवन यापन की ओर बढ़ेगा। काल चक्र उन सब कहानियों को पीछे छोड़ जायेगा जो अब ऋतुएं के कारण अव्यवस्थित थी और प्राणी जन अनचाही ओर अंजानी समस्याओं से ग्रसित था।
कालचक्र अब उस ओर बढ रहा है जहाँ हर प्राणी गुप्त ऊर्जा का संचय कर उस शक्ति का निर्माण करेगा जो अब तक अपना दानव रूप ले चुकी समस्याओं का समूल विनाश कर उस महालक्ष्मी का प्राक्टय करेगा। यह महालक्ष्मी फिर अपनी शक्ति से बसंत ऋतु बन कर सभी के जीवन में बहार बन कर आयेंगी और सभी सुखी समृद्ध व ऊर्जावान बन कर भावी इतिहास को स्वर्ण अक्षरों में लिखेगी।
बसंत ऋतु की ओर बढता ये काल चक्र उन पौराणिक कथाओं को याद दिलाता है जहां स्वर्ग की सत्ता पर दानव राज़ महिषासुर का राज़ था और देव स्वर्ग के राज सिंहासन पर बैठने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे थे और एक युक्ति से उन्होंने अपनी अलग-अलग शक्ति को एकत्र कर उस महा शक्ति के पुंज का निर्माण किया जिसका नाम महालक्ष्मी रखा गया। उस महालक्ष्मी ने फिर सभी देवो की संग्रहित शक्ति से महिषासुर का अंत कर दिया ओर देवों को स्वर्ग का राज़ सिंहासन दिलवा कर उनके जीवन में नवीन बसंत ऋतु की उर्जा डाल दी।
ठीक इसी प्रकार से कालचक्र बसंत ऋतु की ओर बढ रहा है। अब तक दानव रूप धारी बन कर सभी को परेशान करने वालीं ऋतुओं के विदाई के संकेत दे रहा है। वन उपवन में छाता हुआ बसंत प्राणी को फिर सुखी ओर समृद्ध बना कर ऊर्जावान बनायेगा और माघ मास के गुप्त नवरात्रा की शक्ति से ज्ञान की देवी सरस्वती की बसंत पंचमी मनायेगा। इस ज्ञान की ज्योति से अब तक छाये घने कोहरे छंट जाएंगे और सूरज अपनी प्रचंड ऊर्जा से अब तक छाये अंधेरों को खत्म कर देगा। यही काल प्राणी जन को नवीन उर्जा देता हुआ आगे बढता चला जायेगा।
संत जन कहते हैं कि हे मानव कितने गफलत में रहते है लोग कि उनके जीवन का भरोसा नहीं फिर भी धन, दौलत, पद, प्रतिष्ठा के लिए एक दूसरे को नीचा दिखा पाप, झूठ और कपट की चादर को ओढना चाहते हैं। जिस जीवन का कोई भरोसा नहीं उसके लिए व्यक्ति नाना प्रकार के प्रपंच रच कर अपने मानवीय मूल्यो को भूल जाता है, येन केन प्रकारेण किसी पद, प्रतिष्ठा, धन, दौलत को हासिल करने के लिए हर हद तक उतर जाता है।
उस समय परमात्मा नही केवल पद ही प्रिय लगता है। जबकि सदा एक बात नहीं होती और हंसी हर रात नहीं होती, ये घनघोर छाई हुई घटाएँ सदा बरसात नहीं करतीं। अब दिनों दिन काले बादल छंटने वाले हैं और भारी कोहरे घटने वाले हैं जो अंधेरों में ना जाने क्या क्या कर गये वो सब मिटने वाले हैं।
इसलिए हे मानव ये ऋतुओं का चक्र बदलने वाला है और शरीर भी बसंत की नव गुप्त ऊर्जा का संचय करने की ओर बढ रहा है, कहर ढाती हुई ठंड को मात देने में लगा है। अब मौसमी बीमारियों का अंत होने वाला है इसलिए थोड़ा एहतियात रख और अपनी रक्षा स्वयं करता रह। साहस ओर धैर्य को बनाये रख क्यो कि अब हर हाल में बसंत के आगमन की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और कालचक्र उसमें प्रवेश की ओर बढ़ रहा है।