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प्राकृतिक आपदाएं : काल को ग्रहण सा लग गया

न्यूज नजर : अव्यवस्थित होते हुए काल ने अपना ऐसा रूप धारण कर लिया है कि मानो उसे ग्रहण सा लग गया है। वह हर दिन नए घटनाक्रम को अंजाम देने मे जुटा हुआ है। कहीं बारिश की बाढ़ एक ही दिन में लाखों लोगों को घेर कर परेशान कर रही है तो एक ही दिन में सैकड़ों लोगों को मोत के घाट उतार रही है।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

कहीं पर पत्थरों के पहाड़ बर्फ के पहाडों की तरह पिघल कर लोगों की जान ले रहे हैं तो कहीं भूकंप अपनी विनाशकारी लीला को प्रकट कर सब कुछ बर्बाद कर रहे हैं तो कहीं जमीन से निकलीं आग ज्वालामुखी बन सब कुछ जला कर भस्म कर रही है। कही विकराल रूप धारण सूखा पड रहा है तो कहीं मानव गर्मी से झुलस रहे हैं।

हाहाकारी दैत्य बना यह काल पर लगा ग्रहण हर आधुनिक विज्ञान धर्म दर्शन ओर आध्यात्म को तथा हर व्यवस्थाओं को खुले आम चुनौती दे रहा है कि हे मानव मेरे प्रकोप को रोक के बता। भले ही तू अपनी बुद्धि, बल, छल, कपट, झूठ, फरेब, लालच और अंहकार आदि सभी के अस्त्र शस्त्र उठा ले।

ग्रहण वह स्थिति होती हैं जो अस्थायी रूप से या स्थायी रूप में से किसी के अस्तित्व को मिटा देती है और उसके क्रिया प्रभाव रोक देती है। सूर्य और चन्द्र ग्रहण तो मात्र पृथ्वी व चन्द्रमा की छाया का अस्थायी खेल होता है, कुछ ही घंटों का। काश यह ग्रहण स्थायी होता तो दिन या रात को ग़ायब कर देता।

अव्यवस्थित होते हुए काल को मानो पृथ्वी पर उपज रहे दोषों का ग्रहण लग रहा है। विश्व की धरती पर दिनोंदिन बढ रहे अत्याचार, पापाचार व अहंकार मानव सभ्यता और संस्कृति को कुचल रहे हैं तथा प्राणी को मिट्टी का खिलौना समझ तोड़ फोड़ रहे हैं।

स्वर्ण धातु से बनी हर व्यवस्थाएं मानव को गुलाम बनाकर उनका सब कुछ छीनने को उतारू होती जा रही है और राजा हरिश्चंद्र की तरह राज्य का दान देने के बावजूद भी दक्षिणा चुकाने के लिए अपने आप को बेचना पड रहा है। सच्चाई व न्याय के लिए मानव तड़प रहा है और अधर्म उस पर लांछन लगाकर अपने आप को पाक साफ बता रहा है।

विश्व की तीस प्रतिशत ऐसी मिली जुली हर व्यवस्थाएं लगभग सित्तर प्रतिशत को ग्रहण लगा कर सब कुछ बर्बाद करने पर ऊतारू है। यह सभी दोष काल पर अपनी छाया डाल रहे हैं और काल पर ग्रहण लगा रहे हैं। काल भी विकराल रूप धारण महाकाल की शरण में जा रहा है ओर प्रार्थना कर रहा है कि हे नाथ मेरे अवगुण चित ना धरो।

संत जन कहते हैं कि हे नाथ सत्य क्या है और ऐसा क्यो हो रहा है। विश्व की धरती पर यह सब कुछ आप के सिवा कोई नहीं जान सकता है। फिर भी नाथ आप कृपा करें और काल को ग्रहण से मुक्ति दिला कर विश्व के करोड़ों लोगों की रक्षा करे क्योंकि आप इस जगत में विश्वनाथ कहलाते हैं।

इसलिए हे मानव तू इस जगत के प्राणियों की रक्षा कर। जितना भी संभव हो सके इनका सहयोग कर। ऐसा करने से जगत के विश्वनाथ महाकाल महादेव तेरे कल्याणकारी कार्य से प्रसन्न होंगे और सावन मास का फल तुझे कल्याणकारी कार्य करने से ही मिल जाएगा।

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