न्यूज नजर : प्रकृति अपनी पूर्णता और प्रलय दोनों रूपों को आकाश में स्थित चन्द्रमा के रूप में प्रस्तुत करती हैं। सृष्टि सृजन के रूप में प्रकृति चन्द्रमा को पहली कला के रूप में दिखाती है जो किसी को नजर नहीं आता है और दूसरी कला के रूप में नये चन्द्रमा का अस्तित्व नजर आता है और पन्द्रहवें चन्द्रमा के रूप में उसे पूर्ण प्रकाशित कर पूर्णता का परिचय कराती है। इसी चन्द्रमा की पूर्णता को हम पूर्णिमा के नाम से जानते हैं।
सोलहवे दिन प्रकृति चन्द्रमा की पूर्णता का एक अंश घटाना शुरू कर देती है और तीसवे दिन चन्द्रमा आकाश में नजर नहीं आता है और यही प्रलय काल बन कर फिर नयी सृष्टि की संरचना को जन्म देता है।
वर्ष भर में हर मास प्रकृति चन्द्रमा को बारह बार यह पूर्णता का खेल दिखा कर बारह पूर्णिमा का निर्माण करती हैं। हर मास की पूर्णिमा के गुण धर्म के आधार पर मानव ने इस पूर्णिमा का महत्व बताया है और इन बारह पूर्णिमा में से आषाढ़ मास की पूर्णिमा को ” गुरु” अर्थात बड़ा बताया है।
साधारण शब्दों में गुरु उसे ही कहा जाता है। ” गुरु” अर्थात जिसमें सृजन पालन और संहार करने की शक्ति हो तथा वह जीवन के हर मार्ग पर आगे बढने की प्रेरणा देता है तथा ज्ञान कर्म ओर भक्ति का संदेश देकर प्रकृति और जगत से सामंजस्य स्थापित करने का कार्य करता है और करवाता है।