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जो ‘राम’ थे वे ‘परशुराम’ हो गए

 

अराजकता जब चरम सीमा पर पहुंच जाती है और रक्षा करने का महामानव मौन धारण कर लेता है तो सर्वत्र त्राहि त्राहि मच जाती है।

भंवरलाल
ज्योतिषाचार्य एवं संस्थापक,
जोगणिया धाम पुष्कर

बालक बालिकाओं, नर, नारी, बुजुर्ग सभी को अंहकारी शक्तियों से लदा मानव हर तरह की प्रताड़ना देता हुआ नारकीय कर्म करने लग जाता है। दूसरों को मृत्यु के मुख में डाल कर साधु बनने का ढोंग रचता है। ऐसे में प्रकृति स्वयं उसके विनाश के लिए अपनी आंखे खोलने पर मजबूर हो जाती है और ऐसे दुष्ट और अहंकारियों को मौत के घाट उतार देती है।

 

सदा से ऐसा ही होता आया है कि गुमराह करता हुआ महाअहंकारी अपनी शक्तियों का दुरूपयोग कर समाज से सब कुछ छीन लेता है और यमराज की तरह यातना देने लग जाता है। तब एक ही घटना से प्रकृति समूल नाश कर उन अहंकारी शक्तियों का पतन कर देती है। पौराणिक काल में कुछ ऐसा ही हुआ। दानवों के कुल गुरू भृगु वंश में “राम” का जन्म हुआ और उन्होंने अहंकारी शक्तियों को मिटाने के लिए अपने हाथ से परशा उठा कर सभी अहंकारी शक्तियों को मिटा डाला। वहीं राम आखिर में परशुराम कहलाए।

 

भार्गव वंश के महात्मा जमदग्नि का विवाह राजा रेणुक की पुत्री रेणुका के साथ हुआ और उनके संयोग से एक पुत्र हुआ। उस बालक में सभी शुभ लक्षण थे और भृगु वंश के पितामह भृगु ने आकर उस महापराक्रमी पुत्र का नामकरण संस्कार किया। बड़ी प्रसन्नता के साथ उनका उसका नाम “राम” रखा।

राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन ने छल, कपट और अहंकारी बन सुरभि गाय महात्मा जमदग्नि से छीनने के लिए लिए पूरी सेना के साथ आक्रमण कर उस निहत्थे और अकेले ॠषि को मार डाला। यह स्थिति देखकर “राम” को क्रोध आ गया और हाथ में “परशु” को धारण कर इस जगत के समस्त क्षत्रिय राजाओं का वध कर डाला। इस कारण वो जगत में “परशुराम” कहलाए।

केवल राजा इक्षवाकु के महान कुल पर हाथ नहीं उठाया। एक तो वे नाना का कुल था दूसरा माता रेणुका ने इक्षवाकुवंशी क्षत्रियों को मारने की मनाही कर दी थी। वे भगवान विष्णु जी के अंशातार थे लेकिन शक्ति के आवेश में उन्होंने जो कुछ किया इस कारण उन्हें “राम” नहीं “परशुराम” माना गया। ऐसी मान्यता पद्म पुराण की है।

संतजन कहते हैं कि हे मानव तू अपने अन्दर बैठी उस आत्मा को देख, वो साक्षात राम है। उसका ध्यान लगा, निश्चित रूप से वह मन के हाथ में परशा थमा कर मन का मनोबल बड़ा देगा जो अहंकारी शक्तियों का विरोध कर उसे धराशायी कर देगा।

इसलिए हे मानव तू विपरीत परिस्थितियों में भी कुशल ढंग से कार्य को अंजाम दे निश्चित रूप से तू हार कर भी जीत जाएगा ओर अंहकार का शक्तिशाली व्यक्ति मानव सांस लेने के लिए भी मोहताज हो जाएगा।

 

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